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प्रत्यक्ष - श्रोतेन्द्रिय आदि की प्रवृत्ति से होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष है। श्रोत, स्पर्श, चक्षु, रसना, घ्राण आदि इन्द्रियों का शब्द आदि विषयों से सम्पर्क होने से मन के द्वारा अपने विषय का आकार ग्रहण करना ही प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जाता है। अनुमान प्रमाण - एक विषय के प्रत्यक्ष से उससे सम्बन्धित अन्य विषय का ज्ञान प्राप्त करना अनुमान प्रमाण है। दो वस्तुओं के बीच अविनाभाव संबंध होने से साधन (लिंग) के दर्शन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान है, जैसे धुंए को देखकर अग्नि का ज्ञान होना। शब्द प्रमाण - आप्त पुरूष के द्वारा कहे गये शब्द प्रमाण है। जो स्वयं विषय का साक्षात् अनुभव करते हैं, तथा जो रागादि दोषों से रहित होते हैं, वे आप्त पुरूष कहे जाते हैं। उनके द्वारा दिया गया उपदेश जैसे स्वर्ग में अप्सराएँ हैं, उत्तर में कुरू है, आदि आगम वचन शब्दप्रमाण है। इस प्रकार प्रमाण तीन ही होते हैं, शेष उनके अन्तर्गत आ जाते हैं।
इति सांख्य दर्शन
बौद्ध दर्शन -
अब बौद्ध दर्शन के स्वरूप को जानने के लिए कथन करते हैंबौद्धमत में पदार्थ के ज्ञान के लिए ज्ञान के बारह साधन है। वे इस प्रकार हैं - चक्षु, श्रोत, घ्राण, जिव्हा, शरीर, मन, रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श एवं धर्म। धर्म का अर्थ है -सुख दुख आदि। इनके स्वरूप निर्धारण का अर्थात् ज्ञान का हेतु क्या है ? उत्तर में कहते हैं -प्रमाण है। वह दो प्रकार का है –प्रत्यक्ष और अनुमान। प्रत्यक्ष - जो ज्ञान कल्पना से रहित और अभ्रान्त हो, वह प्रत्यक्ष प्रमाण है। कल्पना अर्थात् नाम, जाति आदि की योजना से रहित, जो ज्ञान है वह प्रत्यक्ष है। नाम की कल्पना से युक्त जैसे -डित्थ, जाति की कल्पना से युक्त जैसे -गाय, गुण की कल्पना से युक्त जैसे -श्वेत, क्रिया की कल्पना से युक्त जैसे पकाने वाला, पढ़ानेवाला -इन कल्पनाओं से रहित जो ज्ञान होता है , वह प्रत्यक्ष प्रमाण है। अनुमान प्रमाण - तीन लक्षण से युक्त साधन (लिंग) के द्वारा साध्य (लिंगी) का ज्ञान अनुमान प्रमाण है। वे तीन लक्षण हैं - पक्षधर्मत्व,
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