Book Title: Sarvsiddhantpraveshak
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 40
________________ २६ वैशेषिक दर्शन - संक्षेप में वैशेषिक दर्शन में यह कहा गया है कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय- इन छह पदार्थो के तत्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैशेषिकसूत्र के अनुसार – पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, तथा मन - ये नौ द्रव्य माने हैं। पृथिवी - पृथ्वीतत्त्व के योग से पृथ्वी होती है। वह दो प्रकार की है - नित्य और अनित्य। परमाण की अपेक्षा से पृथ्वी नित्य है, तथा परमाणुओं के अपने कार्यों की अपेक्षा से अर्थात् अनेक भौतिक पदार्थो की अपेक्षा से पृथ्वी अनित्य है। वह चौदह प्रकार के गुणों से युक्त है। वे इस प्रकार हैं :- रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरूत्व, द्रव्यत्व और वेग। अप - अप्तत्व के योग से अप् अर्थात् पानी होता है। रूप, रस, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरूत्व, स्वाभाविक द्रव्यत्व, स्नेह (द्रव) और वेग -ये इसके स्वाभाविक गुण हैं। उसका वर्ण शुक्ल, रस मधुर एवं स्पर्श शीतल होता है। तेज - तेज तत्त्व के सम्बन्ध से तेज अर्थात् अग्नि होती है। वह रूप, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, नैमित्तिक, द्रव्यत्व और वेग - अग्नितत्त्व इन ग्यारह गुणों से युक्त है। उसका वर्ण शुक्ल और भास्वर एवं स्पर्श उष्ण होता है। वायु - वायु तत्त्व के संबंध से वायु उत्पन्न होती है। वह स्वाभावत: न उष्ण और न शीत स्पर्श वाली होती है। वह अनुष्ण-अशीत, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व एवं वेग -इन नौ गुणो से युक्त है। धृति, कम्पादि उसके लिंग अर्थात् चिन्ह है, इसी प्रकार शब्द भी उसका लिंग या चिन्ह है। वह गन्ध और स्पर्श गुण वाली है। आकाश - यह इसका पारिभाषिक नाम है। वह एक है। संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग और शब्द इन छह गुणों वाला है। इसका लिंग शब्द है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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