Book Title: Sarvagnashatakam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Aagamoddharak Granthmala
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________________ 207 16 167 गाथाङ्कः विषयः पृष्ठाङ्कः | गाथाङ्कः विषयः पृष्ठाङ्क: 49 केवलि-जीवयोः परस्परं घात्यघातकस- 77 नियमानन्तसंसारित्वहेतुः / __म्बन्धाभावे कारणम् / 154 | 78 आभिग्रहिकाभिनिवेशिकयोरन्तरम् / 209 ,, केवलिनो नधुत्तारविमर्शः। 155 ,, विराधकत्वादिविचारः। 213 50 केवलियोगात् न कस्यापि भयम् / 79 अनाराधकविराधकयोर्धार्मिकानुष्ठानस्य 52 अनेकान्तवादस्यानेकान्तत्वम् / 161 स्वरूपम् / . 217 53 अवर्णवादस्य स्वरूपं फलं च / ,, इन्द्रियार्थापेक्षया मिथ्यात्वस्य महा५५ अज्ञानानाभोगयोः स्वरूपम् / 164 पापत्वम् / - 220 58 भव्यानां शिक्षा 80 अनुष्ठानस्य शुभत्वे धार्मिकमतिः प्रमा५९ धर्मस्य करणोदिभेदत्रयम् / 168 ___णमिति परामिप्रायस्य निरासः। 222 60 करणादिधर्मस्य स्वामित्वम् / 82 मिथ्यादृष्टयनुष्ठानप्रशंसायां सम्यक्त्वा-. 61 अनुमोदनायाः विषयः / / 169 तिचारस्य बीजम् / 62 प्रशंसास्वरूपं तद्विषयश्च / 224 63 प्रशंसनीयानुमोदनीययोर्भदः। 171 85 परमते जिनमतसदृशानुष्ठानस्य वैफल्यम् / 229 64 शेयहेयानिविचारः / / . .. 173 85 मिथ्यात्वयुताप्ठानस्यानर्थहेतुत्वम्। 231 , अनुपादेयस्य स्वरूपम् / 85 आज्ञाबाह्मानुष्ठानस्य वैफल्यम् / .... 234 66 अनुमोदनाप्रकारः प्रशस्तानुमोदनाखा 87 अभिनिवेशी न जैनभेदविशेषः। 239 मिनश्च / 92 दिगम्बरादीनामादिकर्तारः। 248 67 मार्गानुसारिकत्यस्य स्वरूपम् / . 98 चन्द्रप्रभाचार्यादीनां न गुरुत्वम्। 253 103 जमालेरनन्तसंसारः। 69 मार्गानुयायिकृत्यस्य स्वामी / . . 258 71 प्रशस्तानुमोदनाया विषयः। 104 नानाप्रकारम् उत्सूत्रम् / 271 72 अप्रशस्तानुमोदनायाः स्वामी / , मरीचेः इहाप्यास्तीतिवचनमुत्सूत्रमिश्रम् / 272 73 अप्रशस्तानुमोदनाया विषयः / ,, उन्मार्गस्थितानामुत्सूत्रभाषिणामनन्त- .. 74 आराधकादिमनुष्यत्रैविध्यम् / संसारः। 277 75 आराधकत्वायुपायः। 180 105 आभिग्रहिकाभिनिवेशी न शोभनः / / 279 76 उत्सूत्रोपदेशेन विराधकस्य दृष्टिविष- 11. अमिमिवेशिन उत्कटमिथ्यात्वम् / .. 283 कल्पत्वम् / 187111 आभिप्रहिकामिनिवेशिनोरसग्रहस्य भेदः 284 , अकरणनियमपर्यालोचना। 196 112 जिनाज्ञायाः प्राधान्यम् / ....... : 286 , सव्वप्पवायमूलमितिगाथायाः पर्यालोचना। 199 116 अनुष्ठानस्य सम्यग्योजना / 291 ... (उदधाविव सर्वसिन्धव' इत्यादिश्तती : 120 सम्यक्त्वमिथ्यात्वयोर्माहात्म्यम् / 294 / स्तुतिकर्तुरभिप्रायः। 204 121 उन्मार्गक्रियायाः फलम् / 295

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