Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 9
________________ शब्द और अर्थ के मध्य कोई तात्त्विक संबंध है या नहीं ? इस चर्चा में विस्तार से अपोहवादी बौद्धों का पूर्वपक्ष है जिसमें न्यायसूत्र के भाष्यकार, वार्त्तिककार एवं वैभाषिक मत तथा उद्घोतकर और कुमारिल भट्ट के मतों की विस्तार से समीक्षा की गयी है । यहाँ अध्येतावर्ग को यह लक्ष्य में रखना अति आवश्यक है कि प्रायश: इस बौद्धमत का प्रतिपादन व्याख्याकारने तत्त्वसंग्रह के आधार पर ही किया है, किन्तु पूर्वपक्षमें जहाँ जहाँ तत्त्वसंग्रह - पंजिका (व्याख्या) के उद्धरण दिये गये हैं - उत्तरपक्ष में उनका अनुवाद करते समय पंजिका के उद्धरणों का नहीं किन्तु तत्त्वसंग्रह - मूलग्रन्थ का ही अनुवाद किया है । अध्येतावर्ग को यहाँ सावधानी बरतनी पडेगी, उत्तरपक्ष चर्चा में पूर्वपक्ष की पंक्तियों को पाठक पूर्वपक्ष में अक्षरशः खोजना चाहेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी । अगर तत्त्वसंग्रह ग्रन्थ को साथ में रख कर इस विभाग को पढेंगे तो अध्ययन में सरलता रहेगी । (पृ. १५ से १४९ पूर्वपक्ष, पृष्ठ १४९ से २६४ उत्तरपक्ष ) तृतीयगाथा की व्याख्या में शुद्ध एवं अशुद्ध द्रव्यास्तिक नय का, अद्वैतमत एवं सांख्यमत के विरोधी पर्यायास्तिक नय का विस्तार से निरूपण किया गया है । (पृष्ठ २६५ से ३८२) तथा संग्रह ( नैगम ) व्यवहारऋजुसूत्र - शब्द- समभिरूढ तथा एवंभूत छह नयों के मन्तव्यों का व्युत्पादन किया गया है । ( ३८४ से ३९५ ) चतुर्थ गाथा की व्याख्या में सत्तामात्रविषयक संग्रह नय का व्युत्पादन - विषयविस्तार कर के अन्त में द्रव्यास्तिक व्यवहार नय के विशेष विषयत्व का प्रतिपादन किया गया है । ( ३९७ से ४०२ ) । मेरी क्या गुंजाइश कि मैं इतने महान ग्रन्थ के ऊपर हिन्दी में विवेचन कर सकुं ?! परमेश्वर पंच परमेष्ठि भगवंतों की कृपा से एवं स्व. पूज्यपाद गुरुदेवश्री की पुनित प्रेरणा से कुछ प्रयत्न किया है। अधिकारी मुमुक्षु वर्ग को इस ग्रन्थरत्न के अध्ययन में हिन्दी विवेचन द्वारा तनिक भी सरलता महेसूस होगी तो मैं कृतकृत्य हो जाऊँगा । अग्रिम खण्डों के लेखन कार्य में शीघ्र सफलता प्राप्त हो एतदर्थ शासनदेव को प्रार्थना । Jain Educationa International लि. जयसुंदरविजय - मागसिर सुदि २ बोरीवली- दोलतनगर. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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