Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02 Author(s): Abhaydevsuri Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 7
________________ सम्पादकीय इस ग्रन्थ के सम्पादन कार्य में प्रसिद्ध पंडितयुगल सम्पादित, गुजरात विद्यापीठ अमदावाद की ओर से प्रकाशित द्वितीयखंड की संहिता को ही आधार बनाया गया है । हालाँकि कई जगह प्रचुर अशुद्ध पाठ थे जो लिम्बडी जैन ज्ञान भंडार की प्राचीन प्रति के आधार पर शुद्ध किये गये हैं -- लिम्बडी का हस्तादर्श पाठशुद्धि के लिये बहुत उपयोगी बना है। पूर्व सम्पादकों ने प्रमाणवार्त्तिक और ब्रह्मशुद्धि ग्रन्थों के उद्धरणों में ग्रन्थनिर्देश का स्थान रिक्त रखा हुआ था वे यथासंभव इस सम्पादन में भर दिये गये हैं । पूर्व सम्पादन में जो बडे बडे परिच्छेद थे उन को बाचको की सुविधा के लिये विषय सातत्य को ख्याल में रख कर छोटे छोटे परिच्छेदों में बाँट दिया है । तथा, पंडितयुगल ने उस सम्पादन में जो तत्त्वसंग्रह आदि ग्रन्थों के अनेक श्लोक टीप्पणी में उद्धृत किये थे वे हिन्दी विवेचन के कार्य में अत्यन्त उपयोगी होते हुए भी इस सम्पादन में ग्रन्थगौरव भय से छोड दिये हैं हालाँकि यह कमी हिन्दी विवेचन से महदंश में रद्द हो जायेगी । हमारी ओर से आवश्यकता के अनुसार कुछ नयी टीप्पणी भी जोडी हुई है । मेरी क्या गुंजाईश कि मैं ऐसे बडे और गहन ग्रन्थ का सम्पादन एवं हिन्दी विवेचन का साहस करुं ! देवगुरुकृपा एवं श्रुतदेवता की दया से ही कुछ बालक्रीडा कर दिया है । चारित्रसम्राट - कर्मसाहित्यनिष्णात - सिद्धान्तमहोदधि महातपस्वी विद्वद्वणशिरोमणि स्व. प. पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. न्यायविशारद - उत्सूत्रप्रतिकारसमर्थ एकान्तवादतिमिरतरणी वर्धमानतपोनिधि- अप्रमत्तमुनिपुंगव स्व.प.पू. आचार्यवर्य श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा., सिद्धान्तदिवाकर- प्रावचनीकप्रभावक-वर्त्तमानगच्छाधिपति गीतार्थाग्रणी प. पू. गुरुवर्य आचार्य श्रीमद् विजय जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. इन महापुरुषों की उपकारपरम्परा पूरे इस ग्रन्थ में अनुवर्त्तमान रही है। - अन्यथा यह कार्य होना स्वप्नवत् था । अन्य भी अनेक महात्माओंने इस कार्य में प्रभूत सहयोग दिया । विशेषतः मुनि श्री संयमबोधिविजयजी का प्रुफ संशोदन में सहकार मिला, जो स्मरणीय है । अग्रिम खण्डों का कार्य शीघ्र पूर्ण होने में सहाय के लिये शासनदेवता को प्रार्थना । लि. जयसुंदर विजय बोरीवली (E) मागसिर सुदि १-सं. २०५१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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