Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 12
________________ . अपोहशब्दार्थ की अव्यापकता ६८ गोत्व अश्व में क्यों नहीं होता ? साध्यत्व और भूतकाल की प्रतीति का बाध ६९ इन्द्रियादिजन्य बुद्धि में अपोह का भान 'च' आदि निपात के बारे में अपोहवाद शब्द से अपोहविशिष्ट अर्थ का अभिधान निरर्थक ६९ कैसे ? अन्यापोहशब्द से विधिरूप वाच्य की सिद्धि ७० शब्द द्वारा वस्तु-अंश का अवबोध कैसे ? विकल्पप्रतिबिम्बार्थमतनिरूपण-निरसनम् ७१ वस्तुस्वरूप अन्यव्यावृत्ति की विशेषणता विकल्पगत प्रतिबिम्ब शब्दार्थ नहीं ७१ व्यक्तिओं में अपोह्यत्व का समर्थन अपोहपक्षे उद्योतकरकृताक्षेपाणामुपन्यासः ७२ अभाव में अपोह्यत्व का उपपादन उद्योतकर के आक्षेप ७२ अभाव के बिना भी भावसिद्धि शक्य 'गौ' शब्द से अगौप्रतिषेध असंगत ___ असत् की वासना का सम्भव अपोहक्रिया के विषय पर प्रश्न वाचकापोह पक्ष में दूषणों का निरसन अगोअपोह गो से पृथक् या अपृथक् ? ७४ अवस्तुत्व हेतु से काल्पनिक गम्पगमकभाव जाति के गुणधर्म अपोह में असम्भव का निषेध स्वपक्षाक्षेपप्रतिविधाने पूर्वमपोहवादिकृता विधिस्वरूप शब्दार्थ का स्वीकार स्वमतस्पष्टता ७६ अपोहवाद में सामानाधिकरण्य उपपत्ति १०२ अपोहशब्दार्थवादी का स्वमतस्पष्टीकरण ७६ सामानाधिकरण्य स्वपक्ष-परपक्ष में कैसे ? १०३ अपोह के व्यपदेश के मुख्प-गौण निमित्त ७६ नीलत्व या नीलवर्ण की वाच्यता पर आक्षेप १०४ अर्थ प्रतिबिम्ब ही शब्दवाच्य मुख्य अपोह है वाच्यार्थों का सामानाधिकरण्य अनुपयोगि अपोहमाक्षिप्तवतः कुमारिलस्प प्रतिक्षेपः । ७८ उद्द्योतकर के प्रत्युत्तर का निरसन दिग्नागवचनतात्पर्यप्रकाशेनोद्योतकरोक्तदूषण अपोहबाद में सांवृत सामानाधिकरण्य निरसनम् ७९ शब्दयोगि लिंग तात्त्विक नहीं होता उद्योतकर के आक्षेपों का प्रत्युत्तर लिंगत्रय के सांकर्य की आपत्ति गो-बुद्धिजनन के लिये अन्य शब्द अनावश्यक ८० संस्त्यान आदि के आधार पर लिंगव्यवस्था मुख्यार्थ के बिना भी सामान्यभ्रान्ति ८१ असंगत विविध आक्षेपों का प्रत्युत्तर स्त्रीत्व आदि लिंग सामान्यविशेषरूप नहीं हैं प्रतिभात्मक पदार्थ अपोहरूप भी है। लिंग की तरह संख्या भी काल्पनिक सामान्य के विना भी पर्यायादिव्यवस्था विवक्षावशकल्पितत्व हेतु में असिद्धि का घटादिस्वलक्षण में एककार्यकारित्व असिद्ध नहीं ८५ । आक्षेप सामान्यभेद विना भी विविध अर्थक्रिया ८६ असिद्धि के आक्षेप का निराकरण भेद या अभेद व्यावृत्तियों में नहीं, विकल्प में ८८ । जातिगत संख्या से व्यक्ति में वैशिष्ट्य सामान्य के विना भी अभिन्न प्रत्यवमर्श से कैसे ? सारूप्प ८९ क्रिया-काल आदि का अपोह के साथ स्वलक्षण से ही अन्वयकार्यसम्पादन सम्बन्ध २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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