Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 13
________________ १४३ १४६ नहीं १४७ १४९ आख्यातप्रयोगों से अन्यापोह की प्रतीति ११६ व्यक्ताकार प्रतीति शब्दबुद्धि में नामंजूर १४० अपोह में साध्यत्व प्रतीति का उपपादन ११७ शाब्द और प्रत्यक्ष प्रतीति में प्रतिपतिभेद विधि आदि में भी अन्यापोह का निरूपण ११८ कैसे ? १४१ 'च' आदि अव्ययों से अर्थतः अपोह का शाब्द और अक्षजन्य प्रतीति में भिन्नविषयता १४२ भान व्यक्तिपक्ष में सम्बन्धवेदन की अनुपपत्ति अनन्यापोहशब्द से अपोह के निषेध का भान १२० । प्रत्यक्ष से व्यक्ति में सम्बन्धवेदन अशक्य १४४ प्रमेय आदि शब्दों का वाक्पबाह्य प्रयोग अनुमानादि से सम्बन्धवेदन अशक्य १२१ शब्द वस्तुस्पर्शी नहीं होता वाक्पस्थ प्रमेयादिशब्दों का निवर्त्य सामान्य-विशेषात्मकोऽर्थः शब्दवाच्यः-स्यादा स्वतन्त्र 'प्रमेय' शब्द का अर्थबोध कैसे ? १२३ दिनामुत्तरपक्षः १४९ अपोहवाद में शब्दार्थव्यवस्था की व्यापकता १२३ शब्दार्थ मीमांसा-पूर्वपक्ष समाप्त उद्घोतकर के आक्षेपों का प्रतिकार १२५ स्याद्बादी का उत्तरपक्ष-सामान्यविशेषात्मक स्वार्थापवाद आदि दोषों का निराकरण १२५ शब्दार्थ अपोह क्रियात्मक नहीं प्रतिविम्बात्मक है। जाति की सिद्धि में अडचनों का प्रतिकार १५२ अपोह के वाच्यत्व-अवाच्यत्व विकल्पों का सदृशाकार ज्ञान से सामान्यव्यवस्था १५३ उत्तर १२७ एककार्यतारूप सादृश्य से समानप्रतिभास मे नञ् पद के विना भी अन्यनिवृत्ति का भान अनवस्था १५४ शक्य १२८ सामान्यखंडन के लिए विविध तर्क संकेतसापेक्षता से विकल्पप्रतिबिम्ब के वाचकत्व जाति की व्यक्तिव्यापकता पर आक्षेप १५७ का अनुमान १२९ एकदेश-सर्वदेशवृत्तित्व के विकल्प १५८ अपोहपक्ष में संकेताऽसम्भवादि की आशंका १३० सामान्य के व्यक्तिस्वभाव पक्ष में आक्षेप १५९ आशंका निवारण के लिये तैमिरिकयुगल सामान्पबुद्धि में मिथ्यात्वापत्ति-इष्ट दृष्टान्त १३१ सामान्यविरोधवाद पूर्वपक्ष समाप्त संविद्वपुरन्यापोहवादिप्रज्ञाकरमतोपन्यासः १३२ सामान्य सदृशपरिणामस्वरूप है-जैन मत संवेदनस्वरूप अन्यापोह की वाच्यता-प्रज्ञाकरमत १३२ समान-असमानरूप में एकत्वविरोध की लक्षितलक्षणा द्वारा जातिभान से व्यक्तिभान १३५ आशंका १६१ जातिभान से व्यक्तिप्रकाशन असंगत १३७ चित्रज्ञान में एकत्व कैसे ? - उत्तर 'व्यक्ति में रहना' ऐसा जातिस्वभाव विरोध के दोनों प्रकार में भेदाभेद प्रतीति असंगत १३७ बाधक नील-उत्पल के सामानाधिकरण्य की असंगति १३८ अनुमान में प्रमाणान्तरबाधविरह की शंका जातिवाच्यतापक्ष में धर्म-धर्मिभाव की का उत्तर १६४ अनुपपत्ति १३९ तादात्म्पशून्यस्वभावभेद पर अन्योन्याश्रप दोष १६६ १५६ १६० १६१ १६२ १६३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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