Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 02
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रकाशकीय बड़े हर्ष की बात थी -- दस साल पहले हिन्दी विवेचन सहित सन्मतितर्कप्रकरण का प्रथम खंड शेठ मोतीशा लालबाग चेरिटी ट्रस्ट (भूलेश्वर) मुंबई की ओर से जब सुसम्पादित-प्रकाशित होकर सज्जन विद्वानों के करकमल का अलंकार बना था । ___बडे हर्ष की बात है .. दस साल के बाद चिरप्रतीक्षित सन्मतितर्कप्रकरण-द्वितीयखंड दिव्य दर्शन ट्रस्ट (धोळका) की ओर से सुसम्पादित होकर प्रकाशित हो रहा है । बारह साल पहले पूज्यपाद न्यायविशारद सुप्रसिद्ध जैनाचार्य विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के अन्तर में श्री सन्मतितर्क० मूल एवं व्याख्या ग्रन्थ के ऊपर हिन्दी विवेचन की भावना अंकुरित हुई थी । बहुविध शासनसेवा के कार्य में संलग्न पूज्यश्री समय के अभाव में स्वयं उस भावना को साकार नहीं कर सके । तब अपने पट्टालंकार प.पू.आ. श्री जयघोषसूरीश्वरजी म. के शिष्य मुनि श्री जयसुंदरविजय महाराज को इस महत्काय कार्य के लिये प्रेरित-उत्साहित किया । पूज्य गुरुवर्य के आदेश पर श्रद्धा करते हुए पूज्य मुनिश्रीने कलम ऊठायी - नतीजतन, इस महाकाय ग्रन्थ का प्रथमखंड पूज्य गुरुवर्य की उपस्थिति में ही प्रकाशित हो गया था । पूज्य मुनिश्रीने हिन्दी विवेचन का कार्य जारी रखा, आज उसका द्वितीयखंड आप के करकमलों का आभूषण बन गया है । उपकार नहीं भूल सकते स्वर्गस्थ पूज्य गुरुवर्य का जिन्होंने ५०-६० साल तक जैन जगत् को अपनी दिव्य ज्ञान-संयम-तपोमय ज्योति से आलोकित कर रखा था । इस ग्रन्थ को एक ओर मुद्रणालय में भेजा गया तो दूसरी ओर वि.सं. २०४९ चैत्र वदि १३ के दिन पूज्यापाद गुरुवर्यश्री नश्वर पौद्गलिक देह त्याग कर ईशान देवलोक के सामानिक सुरपति बन गये । आज आप निर्मल अवधिज्ञान से इस महान् कृति को देख कर प्रसन्नता से भर गये होंगे । उन्हीं महापुरुष के आशीर्वाद से दिव्यदर्शन ट्रस्ट शास्त्र साहित्य के प्रकाशनों में आगे कदम बढा रहा है। श्री सान्ताक्रुझ तपागच्छ जैन संघ - मुंबई ज्ञाननिधि से इस ग्रन्थ प्रकाशन के महान् कार्य में विशाल धनराशि का योगदान प्राप्त हुआ है - एतदर्थ हम सदा के लिये उन के ऋणी हैं और वह सान्ताक्रुझ का संघ धन्यवाद का पात्र है । टाईप-सेटिंग का कार्य दिलचस्पी से करनेवाले पार्श्व कोम्प्युटर्स अजयभाई एवं विमलभाई को भी धन्यवाद । पंचम खंड का हिन्दी विवेचन अब मुद्रणालय की प्रतीक्षा में है । तृतीय-चतुर्थ खंड का लेखन-कार्य शीघ्र ही पू. मुनिश्री पूर्ण करे यह शासनदेव को प्रार्थना । लि. दिव्यदर्शन ट्रस्टी गण की ओर से कुमारपाल वि. शाह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 436