Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02 Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ वार्ता के साथ जनश्रुतियों और कथाओंका भी समावेश हमने इस भावये कर दिया है कि आगामी ऐतिहासिक खोजमें वह संमक्तः उपयोगी सिद्ध हों। किन्तु जो बात मात्र जनश्रुति या कथा ही अवलम्बित है. उमका हमने स्पष्ट गन्दोंमें उल्लेख कर दिया है। इसलिए किसी प्रकारका भ्रम होनेका भय नहीं है। इतनेपर भी हम नहीं कह सक्त कि इस खडमं वर्णितकालकी मब ही घटनाओं ठीक-ठीक उल्लेख हुआ है। पर जो कुछ लिखा गया है वह एकमात्र ऐतिहासिक दृष्टिकोणसे । अतः संभव है कि किन्हीं स्थलोंर मतभेदका अनुभव प्रबुद्ध पाठक करें। ऐसे अवसरपर निष्पक्ष तर्क और प्रमाण ही कार्यकारी होसक्ते है। उनके आलोकमें समुचित सुधार भी किये जासक्ते है। इस दिशामें कर्मशील होनेवाले समालोचकोंका आभार हम पहले ही स्वीकार किये लेते है। जसवन्तनगर (इटावा) । २४ मई १९३४ विनीतकामताप्रसाद जैन। A SPage Navigation
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