Book Title: Samyak Charitra Chintamani
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 7
________________ भूमिका प्राचीन ग्रन्थ-लेखनको भो प्रारम्भिक प्रक्रिया यहो पाई जाती है कि ग्रंथकार उस ग्रंयमे वर्णित विषयोकी संक्षिप्त रूपरेखा अन्यके प्रारंभमें लिखा करते थे। उसे ग्रन्थके प्रतिपाद्य विषयको सूची कह सकते हैं। इसीका आजकल कुछ विस्तृत रूप हो गया है और उसे भूमिका, प्रस्ता. वना, प्रास्ताविक, प्रस्तवन उपोद्घात, प्रारंभिक, दो शब्द, प्राक्कथन, आमुख आदि विभिन्न नामोसे उल्लिखित किया जाता है। श्री डॉ. दरबारी लालजो कोठिया-न्यायाचार्यने जो वोर-सेवामंदिर ट्रस्टके मानद मंत्रो तथा 'युगवीर-समन्तभद्र-ग्रंथमाला के सम्पादक और नियामक हैं मुझसे प्रस्तुत ग्रन्थ 'सम्यकन्चारित्र-चिन्तामणि' की भूमिका लिखने का आग्रह किया। मैंने उनके आग्रहको सहर्ष स्वीकार कर समाजके प्रख्यात विद्वान् डॉ. पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्य द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थपर यह भूमिका लिख रहा हूँ। भूमिका का अर्थ आधारशिला है। इस ग्रथको आधारशिला क्या है, इसका प्रतिपाद्य विषय क्या है, लेखक विद्वान इसे लिखनमे कितने सफल हुए हैं इत्यादि अनेक बातो का स्पष्टोकरण हो भूमिका-लेखकका ध्येय होता है। यह एक प्रकारसे ग्रन्थका परिचय तथा उसको समालोचनाका रूप भी बन जाता है। सामान्य पाठक इसे पढकर ग्रन्थका हद्य जान लेता है और फिर उसको विस्तृत व्याख्याको ग्रन्थमे पढ़ता है तो उसे आनन्द भो आता है तथा ज्ञान-वृद्धि भो होतो है। ___ सम्यग-दर्शन, सम्यग्-ज्ञान और सम्यक् चारित्र जिनागमके प्रतिपाच मुख्य विषय हैं। अनेकानेक ग्रन्थ इन पर जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत है। उसी शृङ्खला में डॉ. पन्नालाल जी के दो ग्रन्थ 'सम्यकत्व-चिन्तामणि' और 'सज्ज्ञान चन्द्रिका' इसो ग्रन्थमालासे प्रकाशित हो चुके हैं। यह तृतीय ग्रन्थ 'सम्यक-चारित्र-चिन्तामणि' भी उसोसे प्रकाशित हो रहा है, यह स्तुत्य है। ये तीनो कृतियां संस्कृत-भाषामे तथा विविध छन्दोमें लिखो गई हैं। इस ग्रन्थमें १५ छन्दोका उपयोग किया गया है, जिसको सूचो भो अन्यत्र प्रकाशित है। इस कृतिमे भी पहलेको दो रुसियोंके समान मूल जिनागमके विविध ग्रन्थो में वर्णित ( उपदिष्ट )

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