Book Title: Samraicch Kaha Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ ॥छट्ठो भवो॥ जयविजया य सहोयर जं भणियमिहासि तं गय मयाणि ।। वोच्छामि पुव्व विहियं धरणो लच्छी य पइभज्जा ॥४८०॥ अस्थि इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे परिहरिया अहम्मेणं वज्जिया कालदोसेण रहिया उवद्दवेण निवासो नयसिरोए मायन्दी नाम नयरी। जीए महुमत्तकामिणिलीलाचंकमणणेउररवेण । भवणवणदीहिओयररया वि हंसा नडिज्जंति ॥४८१॥ जीए सरलसहावो पियंवओ धम्मनिहियनियचित्तो। पढमाभासी नेहालुओ य पुरिसाण वग्गो त्ति ॥४८२॥ तत्थ दरियारिमणो सुकयधमाधम्मववत्थो [कालो' व्व रिवूणं] कालमेहो नाम नरवई । जयविजयौ च सहोदरौ, यद् भणितं तं गतमिदानीम् । वक्ष्ये पूर्वविहितं धरणो लक्ष्मीश्च प्रतिभार्ये ॥४८०॥ अस्तीहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे परिहृताऽधर्मेण, वजिता कालदोषेण, रहिता उपद्रवेण, निवासो नयश्रियो माकन्दी नाम नगरी। यस्यां मधुमत्तकामिनीलीलाचंक्रमणनपुररवेण । भवनवनदीधिकोदररता अपि हंसा गुप्यन्ते (व्याकुलीक्रियन्ते) ॥ ४८१॥ यस्यां सरलस्वभावः प्रियंवदो धर्मनिहितनिचित्तः । प्रयमाभाषी स्नेहालुकश्च पुरुषाणां वर्ग इति ॥४८२॥ तत्र दृप्तारिमर्दनः सुकृतधर्माधर्मव्यवस्थः काल इव रिपूणां कालमेघो नाम: नरपतिः। जय और विजय (नामक) दोनों भाइयों के विषय में जो कहना था वह कह दिया, अब शास्त्रोक्त धरण और लक्ष्मी नामवाले पति और पत्नी के विषय में कहूँगा ।:४८०॥ इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अधर्म को जिसने छोड़ दिया है, काल के दोष तथा उपद्रव से रहित, नीतिरूपी लक्ष्मी का जिसमें निवास है, ऐसी माकन्दी नामक नगरी है। __ जिस नगरी में मधु (मादक पदार्थ) से मतवाली कामिनी स्त्रियों के लीलापूर्वक संचारित नूपुरों की ध्वनि से भवन-वन की बावड़ी के अन्दर रहनेवाले हंस भी व्याकुलित किये जाते हैं । जिस नगरी में सरल स्वभावी, प्रिय बोलने वाला अथवा धर्म में अपने चित्त को लगाये हुए, उत्तम वचन बोलनेवाला तथा स्नेहालु पुरुषों का वर्ग है, ॥४८१-४८२॥ वहाँ पर अभिमानी शत्रुओं का मर्दन करने वाला, धर्म तथा अधर्म की भलीभांति व्यवस्था करने वाला, १. नास्ति ख-पुस्तके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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