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[समराइच्चकहा मयरुहिरपाणमुइयघोरंतसुत्तवग्धं, वग्ध भयपलायंतमहिसउलं ॥५०५॥ महिसउलचलणगलग्गगरुयअयगर', अयगर विमुत्त नीसाससद्दभीमं ॥५०६।। भीमबहुविहभमंतकवायलुत्तसत्तं।
सत्तखयकालसच्छहं सिलिधनिलयं नाम पव्वयं ति ॥५०७॥ तत्थ य अणुचियचलणपरिसक्कणेण खीणगमणसत्ति सेयजललवालिद्धवयणकमलं च पेच्छिऊण लच्छि चितियं धरणेण - अहो मे कम्मपरिणई, जेण पिययमाए वि ईइसी अवत्थ ति। लच्छोए चितियं - किलेसो वि मे बहुमओ चेव एयस्त आवईए। गविट्ठे धरणेण लच्छीए पाणसंधारणनिमित्तं फलोययं, न उण लद्धं ति। अइक्कंतो वासरो । पसुत्ताइं पल्लवसत्थरे । अइक्कंता रयणी। [उग्गओ अंसुमाली। तओ] बिइयदियहे य जाममेत्तसेसे वासरे खुहापिवासाहिभूया नग्गोहपाय
मृगरुधिरपानमुदितधुरत्सुप्तव्याघ्र, व्याघ्रभयपलायमानमहिषकुलम् ॥५०५॥ महिषकुलचलनाग्रलग्नगुरुकाजगरं, अजगरविमुक्तनिःश्वासशब्दभीमम् ॥५०६।। भीमबहुविधभ्रमत्क्रव्यादलुप्तसत्त्वं,
सत्त्वक्षयकालसच्छायं शिलिन्ध्रनिलयं नाम पर्वतमिति ॥५०७।। तत्र चानुचित-चरणपरिष्वष्कनेन (परिचंक्रमणेन) क्षीणगमनशक्ति स्वेदजललवाश्लिष्टवदनकमलां च प्रेक्ष्य लक्ष्मी चिन्तितं धरणेन-अहो मे कर्मपरिणतिः, येन प्रियतमाया अपीदृशी अवस्थेति । लक्ष्म्या चिन्तितम्-क्लेशोऽपि मे बहुमत एव एतस्यापदा। गवेषितं धरणेन लक्ष्म्या: प्राणसन्धारणनिमित्तं फलोदकं न पुनर्लब्धमिति । अतिक्रान्तो वासरः। प्रसुप्तौ पल्लवस्रस्तरे। अतिक्रान्ता रजनी। उद्गतोऽशुमाली। ततो द्वितीयदिवसे च याममात्रशेषे वासरे क्षुत्पिपासाभि
मृगों के रुधिर का पान करने से प्रसन्न होकर घुरघुर शब्द करते हुए व्याघ्र जहाँ सो रहे थे, व्याघ्र के भय से जहाँ भैसों का समूह भाग रहा था, भैसों के समूह के अगले पैरों में जहाँ भारी अजगर लग रहे थे, अजगरों द्वारा छोड़े हुए निःश्वास के शब्द से जो भयंकर था, भयंकर एवं अनेक प्रकार से भ्रमण करते हुए चीतों ने जहाँ प्राणियों को ही लुप्त कर दिया था, प्राणियों का क्षय (विनाश) करने से जो काल के आकार का लग रहा था ॥५०५-५०७॥
वहाँ पर अनुचित स्थान में भ्रमण करने से जिसकी गमन करने की शक्ति क्षीण हो गयी थी, ऐसे धरण ने, पसीने की जलबिन्दुओं से जिसका मुखकमल व्याप्त था, ऐसी लक्ष्मी को देखकर विचार किया--'अहो मेरी कर्म की परिणति, जिससे प्रियतमा की भी ऐसी अवस्था हुई । लक्ष्मी ने सोचा - इनकी विपत्ति में मुझे यह क्लेश भी अच्छा है। धरण ने लक्ष्मी के प्राणधारण हेतु फल और जल खोजा, किन्तु प्राप्त नहीं हुआ। दिन व्यतीत हुआ। दोनों पत्तों के बिस्तर पर सोये । रात्रि व्यतीत हुई। सूर्य निकला । तब दूसरे दिन, जबकि दिन
१. चलणमग्गगल्यअयगर-ख । २. पस्त्त-
ख। ३. सिणि घ-ख, पिलिष-ग।
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