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छट्ठो भवो ]
एवं च पइन्नं काऊण कयं कुलदेवयाए कायंवरिनिवासिणीए ओवाइयं ।
जइ तं महाणुभावं जीवंतं एत्थ कहवि पेच्छिस्सं'।
दसहि पुरिसेहि भयवइ तो तुज्झ बलि करिस्सामि ॥५०२॥ एवं च ओवाइयं काऊण गहियाणेयदिवसपाहेया पट्टविया धरणगवेसण निमित्तं दिसो दिसं सबरा । अप्पणा वि य अच्चंतविमणदुम्मणो गओ तं गवेसि।
सो पुण धरणो विणिज्जिए सत्थे 'न एत्थ अन्नो उवाओं' त्ति चितिऊण ओसहिवलयमेत्तरित्थो घेत्तूण लच्छि पलाणो पिट्टओमुहो । जायाए भएणं च मढदिसामंडलं तुरियतुरियं गच्छमाणो पत्तो मुत्तमेत्तसेसे वासरे--
बहुविहरुक्खसाहासंघट्टसंभवंतवणदवं, वणवपलितकंदरविणितसीहं ।।५०३।। सीहहयपडिहयहत्थिकडेवरकयारविसमं,
विसमखलणदुहिंडंतभीयमुद्धमयं ।।५०३।। एवं च प्रतिज्ञां कृत्वा कृतं कुलदेवतायाः कादम्बरीनिवासिन्या औपयाचितम् ।
यदि तं महानुभावं जीवन्तमत्र कथमपि प्रेक्षिष्ये।।
दशभिः पुरुषैर्भगवति ! ततस्तव बलि करिष्यामि ॥५०२।। एवं चौपयाचितं कृत्वा गृहीतानेकदिवसपाथेयाः प्रस्थापिता धरणगवेषणनिमित्तं दिशि दिशि शबराः । आत्मनापि च अत्यन्तविमनोदुर्मना गतस्तं गवेषयितुम् ।।
स पुनर्धरणो विनिजिते सार्थे 'नात्रान्य उपायः' इति चिन्तयित्वा ओषधिवलयमात्ररिक्थो गृहीत्वा लक्ष्मी पलायितः पृष्ठतोमुखः । जायाया भयेन च मूढदिग्मण्डलं त्वरितत्वरितं गच्छन् प्राप्तो मुहर्तमात्रशेषे वासरे
बहुविधवृक्षशाखासंघट्टसम्भवद्वनदवं, वनदवप्रदीप्तकन्दराविनिर्यत्सिहम् ॥५०३॥ सिंहहतप्रतिहतहस्तिकलेवरकचवरविषमं,
विषमस्खलनदुःखहिण्डमानभीतमुग्धमृगम ॥५०४॥ इस प्रकार प्रतिज्ञा करके कादम्बरी नामक वन में निवास करने वाली कुलदेवी की अर्चना की।
यदि उस पुरुष को किसी भी प्रकार जीवित देख लूंगा तो हे भगवती ! दस पुरषों से तुम्हारी पूजा करूंगा ॥५०२॥
. इस प्रकार पूजा करके अनेक दिनों का नास्ता लेकर धरण को खोजने के लिए दिशाओं-दिशाओं में शबरों को भेजा। स्वयं भी अत्यन्त दुःखी होता हुआ उसे खोजने के लिए गया।
वह धरण सार्थ के जीत लिये जाने पर-'यहाँ अन्य उपाय नहीं है ऐसा सोचकर औषधिसमूह मात्र ही जिसका धन है—ऐसा, लक्ष्मी को लेकर उल्टे मुख भाग गया। दिशाओं के विषय में मढ़ हो पत्नी के भय से जल्दी-जल्दी चलता हुआ (धरग) एक मुहूर्तमात्र दिन शेष रह जाने पर
वह धरण ऐसे शिलिन्धनिलय नामक पर्वत को प्राप्त हुआ जो अनेक प्रकार के वक्षों की शाखाओं के रगड़ने से उत्पन्न हुई दाव ग्नि वाला था, दावाग्नि के प्रज्वलित होने से जहाँ सिंह गुफाओं से बाहर निकल रहे थे, सिंहों द्वारा मारे गये हाथियों के शरीरों से और घायल हुए हाथियों की चिल्लाहट से जो (पर्वत) अत्यन्त विषम (भयंकर) था। स्थानों में गिरते, दुःखपूर्वक भ्रमण करने वाले डरे हुए भोले मगों से युक्त था ॥५०३-५०४॥
१. पेक्खिस्सं-क । २. उवाइयं-क । ३. मुहं-क । मुहओ-ख । ।
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