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ब्रह्मकारणतावाद एवं सृष्टि शीर्षक लेख में आलोचनात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की है । अन्य दर्शनों के ज्ञान की आवश्यकता पर डॉ. वीरसागर जैन ने बल दिया है। प्रो. सत्यव्रत वर्मा ने लिङ्गपुराण में योगदर्शन प्रतिपादित किया है । डॉ. मोहित कुमार मिश्र ने संस्कृत तथा फारसी भाषा में क्रियापदों का साम्य वड़ी विद्वत्तापूर्ण एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है । डॉ. हेमवतीनंदन शर्मा ने संस्कृत रचना – श्री दयानंदचरित महाकाव्य की समीक्षा लिखी है । इस अंक में चित्रकला से संबन्धित तीन लेख श्री ज्योति कुमावत, डॉ. रीतिका गर्ग तथा राजेन्द्र प्रसाद द्वारा तैयार किये गये हैं । साध्वी श्री प्रियाशुभांजनाजी ने आचार्य हेमचंद्रसूरि कृत भवभावना ग्रंथ में मनोविज्ञान का निरूपण करने का भी सुंदर प्रयास किया
गुजराती विभाग में प्रायः सभी लेख उत्कृष्ट ढंग से तैयार हुए हैं जिनका अन्य भाषाओं में अनुवाद अपेक्षित है । इस खंड में पं. सुखलालजी का "भारतीय तत्त्वज्ञान की रूपरेखा" भारतीय दर्शन के प्रत्येक जिज्ञासु हेतु अवश्यमेव पठनीय है । मुनि वैराग्यरतिविजयजी ने श्रुत साधना में साध्वीगणों के योगदान का संभवतः प्रथम बार उल्लेख किया है । प्रो. भाईलालभाई ने रघुविलास में निरुपित जीवन बोध प्रस्तुत किया है। प्रो. भगवान एस. चौधरी ने जैन संप्रदाय में स्तवनों के माहात्म्य पर सुंदर प्रकाश डाला है। अंतिम लेख श्री रमेशभाई ओझा द्वारा लिखित पूज्य मुनिजिनविजयजी के जीवन कवन का अत्यंत उत्कृष्ट नमूना कहा जा सकता है ।
हमें विश्वास है कि संबोधि का यह अंक आपको रूचिकर तथा उपयोगि प्रतीत होगा । आपके अभिप्रायों की प्रतिक्षा रहेगी। 26 दिसम्बर 2018, अहमदाबाद
जितेन्द्र बी. शाह