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श्वेताम्बर और दिगम्बर पक्षों की ओर से भी महावीर के जन्म स्थल को लेकर कुछ लेख एवं पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी हुआ है और उनमें अपने-अपने पक्षों के समर्थन में कुछ प्रमाण भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, किन्तु सामान्यतया जो प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं वे सभी परवर्तीकालीन ही हैं। प्राचीनतम साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक प्रमाणों को जानने का ही प्रयत्न नहीं किया गया या अपने पक्ष के विरोध में लगने के कारण उनकी उपेक्षा कर दी गई। भगवान महावीर के सम्बन्ध में जो प्राचीनतम प्रमाण उपलब्ध हैं उनमें आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध लगभग (ई.पू. ५वीं शताब्दी), आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध लगभग (ई.पू. प्रथम-द्वितीय शताब्दी), सूत्रकृतांग (ई.पू. दूसरी-तीसरी शताब्दी), कल्पसूत्र (ई.पू. लगभग दूसरी शताब्दी) हैं। कल्पसूत्र में महावीर के विशेषणों की चर्चा उपलब्ध हैं। उसमें उन्हें ज्ञात, ज्ञातपुत्र, ज्ञातृकुलचंद, विदेह, विदेहदिन्ने अर्थात् विदेहदिन्ना के पुत्र, विदेहजात्य, विदेहसुकुमार आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है। ज्ञातव्य है कि यही सब विशेषण आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पन्द्रहवें अध्याय में भी उपलब्ध हैं (देखें - आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध-मुनि आत्मारामजी - लुधियाना पृ. १३७३)। इन विशेषणों में भी विदेहजात्य विशेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यदि एक बार इस विशेषण का अर्थ वैदेही या वैदेही का पुत्र मानकर यह मान लिया जाय कि ये विशेषण उन्हें उनके मातृपक्ष के कारण दिये गये होंगे, तब भी विदेहजात्य विशेषण तो स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित करता है कि महावीर का जन्म विदेह क्षेत्र में ही हुआ था, जबकि वर्तमान में मान्य नालंदा के समीप वाला कुण्डलपुर तथा लछवाड़ दोनों ही मगध क्षेत्र में आते हैं। वे किसी भी स्थिति में विदेह के अन्तर्गत नहीं माने जा सकते। अत: महावीर का जन्म स्थान यदि किसी क्षेत्र में खोजा जा सकता है तो वह विदेह का ही भाग होगा, मगध का नहीं हो सकता।
इसी प्रसंग में कल्पसूत्र में यह भी कहा गया है कि 'तीसं वासाई विदेहंसि कट्ट' अर्थात् ३० वर्ष विदेह क्षेत्र में व्यतीत करने के पश्चात् माता-पिता के स्वर्गगमन के बाद गुरु एवं वरिष्ठजनों की अनुज्ञा प्राप्त करके उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की।
महावीर का विदेहजात्य होना और फिर गृहस्थावस्था के ३० वर्ष विदेह क्षेत्र में व्यतीत करना ये दो ऐसे सबल प्रमाण हैं जिनसे उनके कुण्डलपुर (नालन्दा) और लछवाड़ में जन्म लेने एवं दीक्षित होने की अवधारणा निरस्त हो जाती है। श्री सीताराम राय ने महावीर के जन्म स्थान को लछवाड़ सिद्ध करने के लिये और वहीं से दीक्षित होकर कुछ ग्रामों में अपनी विहार यात्रा करने का संकेत
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