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थी, कि वे विभिन्न विचारधाराओं के प्रवर्तकों को समान रूप से समादर देते थे। मात्र यही नहीं, उनमें होने वाली विचार चर्चाओं में भी सहभागी होते थे। श्रावस्ती को हम विभिन्न धर्म परम्पराओं की समन्वयस्थली कह सकते हैं।
आगमिक सूचनाओं के अनुसार श्रावस्ती नगर के बाहर बहने वाली उस अचिरावती नदी में जल अत्यन्त कम होता था और जैन साधु इस नदी को पार करके भिक्षा के लिए आ जा सकते थे। यद्यपि वर्षाकाल में इस नदी में भयंकर बाढ़ भी आती थी।
इस प्रकार जैन धर्म की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें श्रावस्ती के साथ जुड़ी हुई हैं। फिर भी यदि तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें तो बौद्ध साहित्य के अनुशीलन से ऐसा लगता है कि यहाँ पर बौद्ध धर्म का प्रभाव अधिक था और स्वयं बुद्ध का इस नगर के प्रति विशिष्ट आकर्षण था। यह ठीक वैसा ही था जैसा कि महावीर का राजगृही के प्रति। यही कारण है कि बुद्ध ने यहाँ अनेक चातुर्मास किये और प्रायः इसी के समीपवर्ती क्षेत्र में विचरण करते थे। जबकि महावीर ने सर्वाधिक चातुर्मास राजगृह और उसके समीपवर्ती उपनगर नालन्दा में किये। फिर भी जैन आगम साहित्य के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रावस्ती का जैन परम्परा के साथ भी निकट सम्बन्ध रहा है। उसे तीसरे तीर्थकर सम्भवनाथ के चार कल्याणकों की पावन भूमि माना जाता है।
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