Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 6
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्राचीन जैनागमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा : १३१
सन्दर्भ:
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-१, भूमिका पृ. ३९ २. राजप्रश्नीयसूत्र (मधुकर मुनि), भूमिका पृ. १८ ३. ऋषिभाषित (इसिभासियाई) अध्याय २० ४. विशेषावश्यकभाष्य गाथा १५४९ - २०२४ ५. आचारांग (सम्पा० मधुकर मुनि) १/१/१/१-३
"एवमेगेसिं णो णातं भवति-अस्थि मे आया उववाइए...
... से आयावादी लोगावादी कम्मावादी किरियावादी।" ६. 'परिण्णाय लोग सण्णं सव्वसो 'आचारांग १/२/६/१०४. ७. सूत्रकृतांग (मधुकर मुनि) १/१/१/७-८ ८. वही ११-१२ ९. जणेणसद्धिं होक्खामि, उत्तराध्ययनसूत्र ५/७ १०. वहीं ५/५-७ ११. जहा य अग्गी अरणी उ सन्तो खीरे घटां तेल्ल महातिलेस् । एमेव जाया ! सरीरंसि सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिढे ।
. . . . . . उत्तराध्ययनसूत्र, १४/१८ १२. नो इन्दियग्गेज्झं अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होई निच्चो। .... वही, १४/१९ १३. सूत्रकृतांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्याय १, सूत्र ६४८-६५६
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