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ऋषिभाषित में प्रस्तुत चार्वाक दर्शन : १३३ हुआ है और ये प्रकार अन्य दार्शनिक ग्रन्थों में मिलने वाले देहात्मवाद, इन्द्रियात्मवाद, मन:आत्मवाद आदि प्रकारों से भिन्न हैं और सम्भवतः अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होते। इसमें निम्न पाँच प्रकार के उक्कलों के उल्लेख हैं - दण्डोक्कल, रज्जूक्कल, स्तेनोक्कल, देशोक्कल और सव्वक्कल। इस प्रसंग में सबसे पहले तो यही विचारणीय है कि 'उक्कल' शब्द का वास्तविक अर्थ क्या हैं? प्राकृत के 'उक्कल' शब्द को संस्कृत में निम्न चार शब्दों से निष्पन्न माना जा सकता है- उत्कट, उत्कल, उत्कुल और उत्कूल। संस्कृत कोशों में 'उत्कट' शब्द का अर्थ उन्मत्त दिया गया हैं। चूंकि चार्वाक दर्शन अध्यात्मवादियों की दृष्टि में उन्मत्तों का प्रलाप था अत: उसे उत्कट (उन्मत्त) कहा गया हैं। मेरी दृष्टि में उक्कल का संस्कृत रूप उत्कट मानना उचित नहीं है। उसके स्थान पर उत्कल, उत्कुल या उत्कूल मानना अधिक समीचीन है। उत्कल का अर्थ है जो निकाला गया हो, इसी प्रकार 'उत्कुल' शब्द का तात्पर्य है जो कुल से निकाला गया है या जो कुल से बहिष्कृत है। चार्वाक आध्यात्मिक परम्पराओं से बहिष्कृत माने जाते थे, इसी दृष्टि से उन्हें उत्कल या उत्कुल कहा गया होगा।
यदि हम इसे उत्कूल से निष्पन्न मानें तो इसका अर्थ होगा किनारे से अलग हटा हुआ। “कूल" शब्द किनारे अर्थ में प्रयुक्त होता है, अर्थात् जो किनारे से अलग होकर अर्थात् मर्यादाओं को तोड़कर अपना प्रतिपादन करता है वह उक्कूल है। चूंकि चार्वाक मर्यादाओं को अस्वीकार करते थे अत: उन्हें उत्कूल कहा गया होगा। अब हम इन उक्कलों के पाँच. प्रकारों की चर्चा करेंगे - दण्डोक्कल
ये विचारक दण्ड के दृष्टान्त द्वारा यह प्रतिपादित करते थे कि जिस प्रकार दण्ड अपने आदि, मध्य और अन्तिम भाग से पृथक होकर दण्ड संज्ञा को प्राप्त नहीं होता, उसी प्रकार शरीर से भिन्न होकर जीव, जीव नहीं होता है। अत: शरीर के नाश हो जाने पर भव अर्थात् जन्म-परम्परा का भी नाश हो जाता है। उनके अनुसार सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होकर जीव जीवन को प्राप्त होता है। वस्तुतः शरीर और जीवन की अपृथकता या सामुदायिकता ही इन विचारकों की मूलभूत दार्शनिक मान्यता थी। दण्डोक्कल देहात्मवादी थे। रज्जूक्कल
रज्जूक्कलवादी यह मानते हैं कि जिस प्रकार रज्जु तन्तुओं का स्कन्ध मात्र है उसी प्रकार जीवन भी पंचमहाभूतों का स्कन्ध मात्र है। उन स्कन्धों के विच्छिन्न होने पर भव-सन्तति का भी विच्छेद हो जाता है। वस्तुतः ये विचारक पंचमहाभूतों
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