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के पाँच पति होने की कथा को स्वीकारते हुए भी उसके व्यक्तित्व की चारित्रिक गरिमा को बनाये रखने के लिए उसके पूर्वभव की कथा भी जोड़ी गई । कथा का सारांश यह है कि द्रौपदी पूर्वभव में अपनी गुरुणी की आज्ञा न मानकर वनखण्ड में स्थित हो उग्र तपस्या करती है और प्रसंगवशात् वह वहां एक वेश्या को पाँच प्रेमियों के साथ क्रीड़ा करते हुए देखती है । उस समय वह यह निश्चय कर बैठती है कि यदि मेरी तपस्या का फल हो तो मुझे भी भविष्य में पाँच पतियों के साथ ऐसी क्रीड़ा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। इस निश्चय (निदान) का परिणाम यह होता है कि उसे अपने वर्तमान भव में पाँच पाण्डवों की पत्नी बनना पड़ता है। इस प्रकार यहां हिन्दू परम्परा में प्रचलित द्रौपदी की कथा को अधिक सुसंगत और तार्किक बनाने का प्रयत्न किया गया है, ताकि द्रौपदी के निर्मल चरित्र को बिना खरोंच पहुॅचाये ही पाँच पतियों वाली घटना को तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया जा सके। इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि यहाँ द्रौपदी और पाँच पाण्डवों को जैन धर्म का अनुयायी बताया गया है। मात्र यही नहीं नारद को असंयमी परिव्राजक के रूप में चित्रित करके जैन धर्म की अनुगामिनी द्रौपदी द्वारा समुचित आदर न देने की घटना का भी उल्लेख है। इससे ऐसा लगता है कि ज्ञाताधर्मकथा के इस कथा प्रसंग की रचना के समय तक जैन संघ में धार्मिक कट्टरता का प्रवेश हो चुका था क्योंकि जहां जैन परम्परा के प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थ ऋषिभाषित में देवनारद को अर्हतऋषि कहकर सम्मानित ढंग से उल्लिखित किया गया है वहां इस कथा - प्रसंग में नारद को असंयमी, अविरत और कलहप्रिय तथा पद्मनाभ के साथ मिलकर द्रौपदी के अपहरण की योजना बनाने वाला कहा गया है। उल्लेखनीय यह भी है कि इस नारद को कडच्छुप नारद कहा गया है। यद्यपि यह विवादास्पद ही है कि ऋषिभाषित के देवनारद और ज्ञाता के कडच्छुप नारद एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग, यह कहना कठिन है।
द्रौपदी के इस कथा प्रसंग में प्रसंगवश पांचों पाण्डवों, कुन्ती और श्रीकृष्ण का उल्लेख भी है। कथा के अनुसार द्रौपदी का पद्मनाभ द्वारा अपहरण हो जाने पर पाण्डव चिन्तित होते हैं तथा द्रौपदी को खोजने में श्रीकृष्ण को ही समर्थ मानकर अपनी माता कुन्ती को श्रीकृष्ण के पास भेजकर द्रौपदी की खोज के लिए उनसे निवेदन करते हैं। इसमें कुन्ती को कृष्ण की पितृभगिनी कहा गया है। कृष्ण कुन्ती को आश्वस्त करते हैं कि मैं द्रौपदी की खोज करूंगा। वे नारद से द्रौपदी के अपहरण की घटना की जानकारी प्राप्त करते हैं तथा पाण्डवों को यह संदेश देते हैं कि वे पूर्व दिशा में गंगा नदी और समुद्र के संगम स्थल पर ससैन्य तैयार होकर पहुँचें । कृष्ण स्वयं भी ससैन्य वहां पहुॅचकर लवण समुद्र के मार्ग से
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