________________
१०२
से निर्मित हुई थी । इन्द्र की नगरी अलकापुरी के समान जान पड़ती थी। इस नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात् ईशानकोण में रैवतक (गिरनार) पर्वत था तथा रैवतक पर्वत और द्वारिका के बीच में नन्दनवन नामक उद्यान था। इस द्वारिका नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव राजा राज्य करते थे। इस नगर में समुद्रविजय आदि दस दशार्ह, बलदेव, आदि पांच महावीर, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ कुमार, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त योद्धा, वीरसेन आदि एक्कीस हजार पराक्रमी, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान पुरुष, रुक्मिणी आदि बत्तीस हजार रानियां, अनंग सेना आदि अनेक गणिकाएं बहुत से ईश्वर (धनाढ्य सेठ), तलवर (कोतवाल), सार्थवाह आदि निवास करते थे। उन कृष्ण वासुदेव का उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत पर्यन्त तथा तीनों दिशाओं में लवण समुद्र पर्यन्त शासन था। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन मात्र कृष्ण के पारिवारिक एवं राजकीय वैभव का चित्रण करता है। यद्यपि इस अध्ययन में दो अन्य प्रमुख घटनाएं कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित हैं - प्रथम तो यह कि कृष्ण को जब यह ज्ञात होता है कि अर्हत् अरिष्टनेमि द्वारिका के बाहर उद्यान में पधारे हैं तो वे अपने समस्त राज्य परिवार के साथ उनके दर्शन को जाते हैं तथा उपदेश सुनते हैं। अरिष्टनेमि के उपदेश से थावच्चा नामक गाथापत्नी के पुत्र को वैराग्य उत्पन्न होता है। कृष्ण उसके वैराग्य की परीक्षा करते हैं तथा अत्यंत वैभवशाली अभिनिष्क्रमण महोत्सव का आयोजन करते हैं। वैसे इस अध्याय में श्री कृष्ण की राज्य सम्पदा तथा उदारवृत्ति का परिचय तो मिलता है किन्तु उनके जीवन प्रसंगों का कोई उल्लेख नहीं है।
जैन आगम साहित्य में एक अन्य ग्रन्थ प्रश्नव्याकरणसूत्र में भी कृष्ण के राज्य और परिवार का विस्तार से वर्णन किया गया है। ज्ञाताधर्मकथा के शैलक अध्ययन में वर्णित कृष्ण के राज्य और परिवार के विवरण से प्रश्नव्याकरण के विवरण की तुलना करने पर हमें कुछ नवीन सूचनाएं प्राप्त होती हैं। इसमें कृष्ण की सोलह हजार रानियों का उल्लेख है। प्रश्नव्याकरण का यह विवरण ज्ञाताधर्मकथा के विवरण से इस अर्थ में विशेषता रखता है कि यहां कृष्ण के जीवन के संदर्भ में हिन्दू परम्परा में उल्लिखित अनके घटनाओं का उल्लेख हुआ है। इसमें कृष्ण के द्वारा मुष्टिक और चाणूर नामक मल्लों का, रिष्ट नामक दुष्ट बैल का, कालिया नामक नाग का, यमुनार्जुन नामक राक्षस का, महाशकुनि और पूतना नामक दो विद्याधारियों का तथा कंस और जरासंध नामक दो शक्ति सम्पन्न राजाओं का संहार करने का उल्लेख मिलता है। प्रश्नव्याकरण में कृष्ण का यह जीवन-वृत्त विस्तृत रूप में उपलब्ध है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org