________________
७८
मेल खाता है।” किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि ऊँचानगर शाखा का सम्बन्ध बुलन्दशहर से तभी जोड़ा जा सकता है जब उसका अस्तित्व ई. पू. प्रथम शताब्दी के लगभग रहा हो या कम से कम उस काल में ऊँचानगर कहलाता भी हो। इस नगर के प्राचीन 'बरण' नाम का उल्लेख तो है, किन्तु यह भी ९ - १०वीं शताब्दी से पूर्व का ज्ञात नहीं होता। बारण (बरण) नाम से कब इसका नाम बुलन्दशहर हुआ, इसके सम्बन्ध में किसी नतीजे पर पहुंचने में उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त की है। यह हिन्दुओं द्वारा ऊँचागॉव या ऊँचानगर कहा जाता था- मुझे तो यह भी उनकी कल्पना सी प्रतीत होती है। इस सम्बन्ध में वे कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। बरन नाम का उल्लेख भी मुस्लिम इतिहासकारों ने दसवीं सदी के बाद ही किया है । इतिहासकारों ने इस ऊँचागाँव किले का सम्बन्ध तोमर वंश के राजा अहिवरण से जोड़ा है, अतः इसकी अवस्थिति ईसा के पाँचवी छठीं शती से पूर्व तो सिद्ध ही नहीं होती। यहाँ से मिले सिक्कों पर ‘गोवितसबाराणये' ऐसा उल्लेख है। स्वयं कनिंघम ने भी सम्भावना व्यक्त की है कि इन सिक्कों का सम्बन्ध वारणाव या वारणावत से रहा होगा। वारणावर्त का उल्लेख महाभारत में भी है जहाँ पाण्डवों ने हस्तिनापुर से निकलकर विश्राम किया था तथा जहाँ उन्हें जिन्दा जलाने के लिये कौरवों द्वारा लाक्षागृह का निर्माण करवाया गया था। बारणावा (बारणावत) मेरठ से १६ मील और बुलन्दशहर (प्राचीन नाम बरन) से ५० मील की दूरी पर हिंडोन और कृष्णा नदी के संगम पर स्थित है। मेरी दृष्टि में वह वारणावत वही है जहाँ से जैनों का 'वारणगण' निकला था। 'वारणगण' का उल्लेख भी कल्पसूत्र स्थविरावली एवं मथुरा के अभिलेखों में उपलब्ध होता है। अत: बारणाबत (वारणावर्त) का सम्बन्ध वारणगण से हो सकता है न कि उच्चैर्नागरी शाखा से, जो कि कोटिकगण की शाखा थी । अतः अब हमें इस भ्रान्ति का निराकरण कर लेना चाहिए। उच्चैर्नागर शाखा का सम्बन्ध किसी भी स्थिति में बुलन्दशहर से नहीं हो सकता ।
यह सत्य है कि उच्चैर्नागर शाखा का सम्बन्ध किसी ऊँचानगर से ही हो सकता है। इस सन्दर्भ में हमने इससे मिलते-जुलते नामों की खोज प्रारम्भ की है। हमें ऊँचाहार, ऊँचडीह, ऊँचीबस्ती, ऊँचौलिया, ऊँचाना, ऊँच्चेहरा आदि कुछ नाम प्राप्त हुए। हमें इन नामों में ऊँचाहार (उ.प्र.) और ऊँचेहरा (म.प्र.) ये दो नाम अधिक निकट प्रतीत हुए । ऊँचाहार की सम्भावना भी इस लिए हमें उचित नहीं लगी कि उसकी प्राचीनता के सन्दर्भ में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। अत: हमने ऊँचेहरा को ही अपनी गवेषणा का विषय बनाना उचित समझा। ऊँचेहरा मध्यप्रदेश के सतना जिले में सतना रेडियो स्टेशन से १० कि.मी.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org