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भूमिका
गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास सारिणी क्रमांक १
तत्त्वार्थ एवं तत्त्वार्थ कसायपाहुडसुत्त
भाष्य
१
३री - ४थी शती
२
४थी शती
मार्गणा आदि शब्दों शब्दों का अभाव, का पूर्ण अभाव | किन्तु मार्गणा शब्द पाया जाता है।
गुणस्थान, जीव- गुणस्थान, जीवस्था | समवायांग में गुण समास, जीवस्थान, न, जीवसमास आदि थान शब्द का अभाव
किन्तु जीवठाण का उल्लेख है जबकि जीवसमास एवं षट्खण्डागम में प्रारम्भ में जीवसमास और बाद में गुणस्थान के नाम से १४ अवस्थाओं का चित्रण |
कर्मविशुद्धि या कर्मविशुद्धि या आ आध्यात्मिक विकास ध्यात्मिक विकास की
की दस अवस्थाओं का चित्रण, मिथ्यात्व का अन्तर्भाव करने पर ११ अवस्थाओं का उल्लेख।
सास्वादन, सम्यक् मिथ्यादृष्टि और अयोगी केवली दशा का पूर्ण अभाव |
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समवायांग / षट्खण्डागम / जीव
समास
दृष्टि से मिथ्यादृष्टि की गणना करने पर प्रकार भेद से कुल १३ अवस्थाओं का उल्लेख |
३
५वीं-६ठी शती
१४ अवस्थाओं का उल्लेख है ।
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४३
श्वेताम्बर दिगम्बर तत्त्वार्थ की टीकाएँ ਦਰਂ आराधना, मूलाचार समयसार, नियमसार आदि ।
४
६ठी शती या उसके
पश्चात्
गुणस्थान शब्द की स्पष्ट उपस्थिति ।
सास्वादन (सासादन) सास्वादन, सम्यक् उल्लेख है। और अयोगी केवली मिथ्यादृष्टि (मिश्रअवस्था का पूर्ण दृष्टि) और अयोगी अभाव, किन्तु सम्य- | केवली आदि का | मिथ्यादृष्ठि उपस्थिति।
की उल्लेख है।
१४ अवस्थाओं का उल्लेख है।
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