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साही अन्तर है यथा प- (प), अ- (अ)। यह सम्भव है कि किसी लेहिए की भूल के कारण आगे “अ” के स्थान पर "प" का प्रचलन हो गया हो किन्तु जब तक अन्य कृतियों से इस पाठ भेद की पुष्टि न हो जाती हो तब तक “प" के स्थान पर “अ” की कल्पना कर लेना उचित नहीं है । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि स्वयम्भू आजीवन गृहस्थ ही रहे मुनि नहीं बने फिर भी उनका ज्ञान गाम्भीर्य, विद्वत्ता, धार्मिक सहिष्णुता और उदारता आदि ऐसे गुण हैं जो उन्हें एक विशिष्ट पुरुष की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देते हैं।
जहाँ तक स्वयम्भू के व्यक्तित्व का प्रश्न है वे आत्मश्लाधा एवं चाटुकारिता से दूर रहने वाले कवि हैं। ये ही कारण हैं कि उन्होंने स्वतः अपनी विशेषताओं का कोई परिचय नहीं दिया यहाँ तक कि उन्होंने अपने आश्रयदाता राष्ट्रकूट राजा ध्रुव और उनके सामन्त धनञ्जय की भी कोई स्तुति नहीं की । यद्यपि वे उनके प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन अवश्य करते हैं और अपने को उनका आश्रित बताते हैं मात्र यही नहीं, उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों-अमृताम्बा और आदित्याम्बा के प्रति भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की है। उनमें विनम्रता अपनी चरम बिन्दु पर परिलक्षित होता है । वे अपने आप को अज्ञानी और कुकवि तक भी कह देते हैं। उन्होंने इस तथ्य को भी स्पष्ट किया है कि यह साहित्य साधना वे पाण्डित्य प्रदर्शन के लिए न करके मात्र आत्म अभिव्यक्ति की भावना से कर रहे हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में कृत्रिमता न होकर एक सहजता है ।
यद्यपि उनमें पाण्डित्य प्रदर्शन की कोई एक भावना नहीं है फिर भी उनके काव्य में सरसता और जीवन्तता है । यद्यपि वे आजीवन गृहस्थ ही रहे फिर भी उनकी रचनाओं में जो आध्यात्मिक ललक है वह उन्हें गृहस्थ होकर भी सन्त के रूप में प्रतिष्ठित करती है । वस्तुतः उनके काव्य में जो सहज आत्मभिव्यक्ति है उसी ने उन्हें एक महान् कवि बना दिया है। महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन ने उन्हें हिन्दी कविता के प्रथम युग का सबसे बड़ा कवि माना है । वे भारत के गिने-चुने कवियों में एक हैं।
स्वयम्भू की रचनाएँ
स्वयम्भू की ज्ञात रचनाएँ निम्न ६ हैं - (१) पउमचरिउ, (२) स्वयम्भू छन्द, (३) रिट्ठनेमिचरिउ, (४) सुव्वचरिउ, (५) सिरिपञ्चमीचरिउ, (६) अपभ्रंश व्याकरण |
इनमें प्रथम दो प्रकाशित हो चुके हैं, तीसरा भी प्रकाशन की प्रक्रिया में है किन्तु शेष तीन अभी तक अनुपलब्ध हैं। इनके सम्बन्ध में अभी कुछ कहना कठिन है। किन्तु आशा की जा सकती है कि भविष्य में किसी न किसी ग्रन्थ भण्डार में इनकी प्रतियाँ उपलब्ध हो सकेगीं। उनके व्यक्तित्व के वैशिष्ट्य के सम्बन्ध में डॉ० किरण सिपानी ने विस्तृत चर्चा और समीचीन समीक्षा भी प्रस्तुत है।
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