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(विश्वसनीयता) और विसर्जन (त्याग) की मनोवृत्तियों को जीवन में स्थान देना चाहिए ताकि वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन का विकास हो सके।
व्यक्ति जैसे-जैसे इन आवेगात्मक मनोवृत्तियों से ऊपर उठता है, वैसे-वैसे उसका व्यक्तित्व परिपक्व बनता जाता है और जब इन आवेगात्मक मनोभावों से पूर्णतया ऊपर उठ जाता है, तब वीतराग, अर्हत् या जीवनमुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है, जो कि नैतिक जीवन का साध्य है। आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से इसे परिपक्व व्यक्ति (Matured Personality ) की अवस्था कहा जा सकता है।
कषाय एवं हमारा व्यक्तित्व — हमारे व्यक्तित्व का सीधा सम्बन्ध हमारे कषाय सम्बन्धी आवेगों से है। इन आवेगों की जितनी अधिक तीव्रता होगी, व्यक्तित्व में उतनी ही अधिक अस्थिरता होगी । व्यक्ति जितना कषायों या आवेगों से ऊपर उठेगा, उसके व्यक्तित्व में स्थिरता एवं परिपक्वता आती जायेगी। इसी प्रकार व्यक्ति में वासनात्मक आवेगों (कषायों) की जितनी अधिकता होगी, नैतिक दृष्टि से उसका व्यक्तित्व उतना ही निम्नस्तरीय होगा। आवेगों (मनोवृत्तियों) की तीव्रता और उनकी अशुभता दोनों ही व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। वस्तुतः आवेगों में जितनी अधिक तीव्रता होगी, उतनी व्यक्तित्व में अस्थिरता होगी और व्यक्तित्व में जितनी अधिक अस्थिरता होगी उतनी ही अनैतिकता होगी। आवेगात्मक अस्थिरता अनैतिकता की जननी है। इस प्रकार आवेगात्मकता, नैतिकता और व्यक्तित्व तीनों ही एक-दूसरे से जुड़े हैं । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि व्यक्ति के सन्दर्भ में न केवल आवेगों की तीव्रता पर विचार करना चाहिए वरन् उनकी प्रशस्तता और अप्रशस्तता पर भी विचार करना आवश्यक है। प्राचीन काल से ही व्यक्ति के आवेगों तथा मनोभावों के शुभत्व एवं अशुभत्व का सम्बन्ध हमारे व्यक्तित्व से जोड़ा गया है। आचार दर्शन में व्यक्तित्व के वर्गीकरण या श्रेणी - विभाजन का आधार व्यक्ति की प्रशस्त और अप्रशस्त मनोवृत्तियाँ ही हैं।
सन्दर्भ :
१. विशेषावश्यकभाष्य- २६६८-२६७१।
२.
३.
४.
तुम अनन्तशक्ति के स्रोत हो, पृ० ४७। अभिधानराजेन्द्र कोश, खण्ड ३, पृ० ३९५।
भगवतीसूत्र, १२/५/२।
अंगुतरनिकाय, ३/१३०।
६. भगवतीसूत्र, १५/५/५/
७.
तुलना कीजिए - जीवनवृत्ति और मृत्युवृत्ति (फ्रायड)।
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