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प्रवेशक.
अशुभ मानेछ; अने ख, अने न, ने केटलाक दग्धाक्षर मानेछे, पण आ विषे घणा विद्वानोनी संमत्ति नथी.
दग्धवर्ण अथवा अशुभ वर्णने आरंभमां मूकी कोइ पण लौकिक छंदनी रचना कवी नहि एम कवियोनुं मानतुं छे. वैदिक छंदने ए अपवाद लागु पडतो नथी. वळी अनुभ वर्णने छंदना आद्य भागमां न चालते मूकवा; पण दग्ध वर्णनो कोइ पण छंदना आद्य भागमा उपयोग न करवो एम पण केटलाकनुं केहेबुं छे.
दग्धाक्षर दीर्घ होय अथवा तेनो प्रयोग मंगलवाचक शब्दमां अथवा कोइ देववाचक शब्दमां थयो होय तो ते अशुभ नथी गणालो. तेमज तेवा ज शन्दना गणमां ए अक्षर आवेलो होय ने से गण जो कोइ छदमां वयं गणातो होय तो ते. पण ग्राहक बनेछे, अर्थात् ए दोषधी मुक्त थायछे. जेमकेः
"रघुपति प्रना प्रेमवश देसी,
सदयहृदय दुखी थया विशेखी।" उपरना रबुपति शब्दमा र दग्धाक्षर छे परंतु रागना वर्णन मां ए दोषमुक्त थायछे... ___ म्लेच्छ, चाण्डाल अने इतर कनिष्ट मातिनी कवितामा घ,. र, भ असे खनो दग्धाक्षर दोष रहेतो नथी..
ब्राह्मण अथना द्विजना वर्णननी कवितामा न अने ज वर्ण थी शिरु थता शन्दो प्रारंभमां आवे तो दोष गणातो नथी.
वैश्यना वर्णननी कविता होय तो तेना सम्दना आरंभमां ख, र, ध, वर्ण आववा देवा नहि..
स्वयाः धारेलो छंद कोइपण स्त्री संबंधी होय तो तेना आद्या ह, झ. अने घ, धी शिरु यता शब्दनो प्रयोग करवोनहि.
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