Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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कोश सम्बन्धी विशेषताएँ
इस कोश की अनेक विशेषताओं में से अन्यत्तम विशेषता यह है कि राजस्थानी शब्दों के हिन्दी पर्याय, अर्थ और व्याख्यातामों के अनन्तर काले अक्षरों में राजस्थानी पर्याय, अर्थ भी अधिकांश स्थलों पर दिये गये हैं, यथा(१) देवनागरी (ना०) संस्कृत, राजस्थानी, हिन्दी, मराठी आदि भाषाओं की लिपि । बाळबोध । २. छत-(अव्य०) होते हुए। होताथकां । इस प्रकार यह कोश केवल राजस्थानी-हिन्दी कोश न रह कर एक प्रकार का राजस्थानीहिन्दी-राजस्थानी शब्द कोश बन गया है।
___ हम यह मानते हैं कि यदि हिन्दी को सही मानों में राजभाषा बनना है तो देश की भाषा-भगिनियों के अनेक शब्दों से अपने शब्द भंडार को भरना होगा। इसी दृष्टि से अनेक स्थानों पर मूल राजस्थानी शब्दों की व्याख्या करते समय वाक्य रचना में उनका हिन्दी व्याकरणानुसार प्रयोग किया गया है । यथा-(१) धमोळी-(ना०) २. धमोली का विशिष्ट भोजन ३. धमोली के लिये संबधियों द्वारा भेजी जाने वाली मिष्ठान्न आदि को सौगात । ४. स्त्रियों द्वारा धमोली भोजन करने की क्रिया । पृष्ठ १०३ पर पानापारण (न०) २. आने और पारणों के पहाड़े।
राजस्थानी भाषा में अपनाये गये कुछ अंग्रेजी शब्दों को देवनागरी लिपि में भी दिया गया है, जिससे कि विदेशी भाषा के शब्द के तत्सम रूप में परिचित हुआ जा सके ।
शब्दों के अर्थ देते समय सामान्यत: यह ध्यान रखा गया है कि प्रथम वह अर्थ दिया! जो अधिक प्रचलित हो। इसके बाद क्रमशः कम प्रचलित अर्थों को रखा गया है । प्रचलित और व्यवहृत सभी अर्थों को देने का प्रयत्न किया गया है, फिर वे चाहे प्राचीन काव्य में प्रयुक्त हुए हों अथवा आधुनिक साहित्य में । इसी प्रकार कतिपय शब्दों के कुछ प्रचलित मुहावरे भी यथा स्थान दिये गये हैं। राजस्थानी भाषा की व्यंजना शक्ति का विद्वद्गण इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि अकेले 'हाथ' शब्द से बने तीन सौ मुहावरे हमारे संग्रह में हैं।
___ अक्षरादि क्रम में भी थोड़ा परिवर्तन हमने वैज्ञानिक दृष्टि से उचित समझा है। अनुस्वार वाले शब्द मात्राओं के पहिले न देकर अपनी-अपनी मात्राओं के बाद दिये गये हैं। यथा-इस कोश में पृ. ६८० पर 'ना' का अन्तिम शब्द 'नाहेसर रो मगरो' है इसके पश्चात् अनुस्वार युक्त 'ना' का प्रारम्भ होता है । यथा-नां, नांई, नांखणो आदि ।
'ड' और 'ड' तथा 'ल' और 'ळ' क्रमशः 'ट' वर्ग और अंतस्थ वर्ग के हैं, अतएव इनको अलग क्रम से न रखकर एक ही क्रम में रखा गया है, यथा
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