Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2 Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur View full book textPage 7
________________ * प्रस्तावना * जैनधर्म में स्वाध्याय-अध्ययन- श्रावकों के दैनिक कर्मों में से एक प्रमुख कर्म है। प्रत्येक श्रावक के लिये शास्त्र-स्वाध्याय करना आवश्यक माना गया है। इतना ही नहीं किन्तु, स्वाध्याय को एक उत्तम तप भी बतलाया गया है। इसलिये जैनों के प्रत्येक धार्मिक स्थानों-मन्दिर एवं चैत्यालयों में छोटा अथवा बड़ा ग्रन्थ भण्डार का होना आवश्यक है, जिससे प्रत्येक स्त्री पुरुष वहीं बैठ कर शास्त्र स्वाध्याय कर सकें । इस शास्त्र-स्वाध्याय के लिये श्रावकों को नये २ ग्रन्थों को आवश्यकता होती रहती है और उनकी इस आवश्यकता की पूर्ति करने के लिये नये नये ग्रन्थों की रचना, अथवा प्रतिलिपि हुआ करती है । इसके उदाहरण हमें ग्रन्थों की लेखक प्रशस्तियों एवं ग्रंथ-प्रशस्तियों में देखने को मिल सकते हैं । इस प्रकार स्वाध्याय प्रेमियों की इस आवश्यकता ने विशाल जैन साहित्य को जन्म दिया। यही नहीं किन्तु इसने जैनाचार्यों एवं अन्य विद्वानों को मेधा शक्ति का भी खूब विकास किया जिससे उन्होंने अपने जीवन के अमूल्य समय को साहित्य के सर्जन तथा अध्ययन अध्यापन में लगाया। उनके महान् परिश्रम का फज यह हुआ कि आज साहित्य का ऐसा कोई जंग नहीं बचा जिस पर जैनाचार्यों ने अपनी लेखनी न चलायी हो। श्रावकों ने भी साहित्य वृद्धि में अत्यधिक योग दिया। उन्होंने एक २ ग्रन्थ की कितनी ही प्रतियां करवा कर शास्त्रभएडारों में विराजमान की तथा स्वाध्याय प्रेमियों को निःशुल्क वितरण को। आचार्यों एवं श्रावकों के रस साहित्यानुराग का यह फल हुआ कि अाज हमें भारत के प्रत्येक महरू पूर्ण स्थान पर जैन शास्त्र-भण्डार उपलब्ध होते हैं। राजस्थान जैन-धर्म एवं जैन-संस्कृति का एक सुदीर्घकाल से केन्द्र रहा है। इस प्रदेश पर सदा क्षत्रिय राजाओं का राज्य रहा है। भारत पर मुसलमानों के श्राक्रमण के समय में भी सारा राजस्थान राजपूत सरदारों के अधीन था । प्रायः सारे देश में जब मुसलमानों और इसके बाद जब अंग्रेजों का शासन हो गया तब भी इस प्रदेश पर तो सीधे रूप से राजाओं का ही राज्य रहा है। यही कारण है कि राजस्थान भारत के अन्य प्रान्तों की अपेक्षा आक्रमणों आदि के भय से अधिक सुरक्षित रहा । इसके अतिरिक्त यहां के राजा महाराजाओं ने भी विशुद्ध भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित तत्वों को आश्य प्रदान किया तथा उन्हें सुरक्षित रखने का बहुत कुछ श्रेय भी प्राप्त किया। जैनों ने भी यहां के राजा महाराजाओं के शासन को सुचारु रूप से चलाने में उल्लेलनीय एवं स्मरणीय सहयोग प्रदान किया । जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बूदी, झालावाड, सिरोही श्रादि भूतपूर्व रियासतों में प्राचीन काल में शताब्दियों तक जैनों ने दीवान, मन्त्री, कोषाध्यक्ष श्रादि प्रतिष्ठित एवं विश्वस्त पदों पर कार्य किया जिससे उन पर वहां के शासकों की श्रद्धा एवं आदर भाव बना रहा। यही कारण है कि आज हमेंPage Navigation
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