Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 6
________________ - आसन्नता है कि शास्त्रों की सूची तो तैयार होती ही है साथ ही साथ भण्डारों की अवस्था भी एक दम बदल जाती है और वे दर्शनीय भी बन जाते हैं। अन्य सूची के अतिरिक्त क्षेत्र की ओर से राजस्थान के महत्त्वपूर्ण मूर्तिलेखों यंत्र-लेखों एवं शिलालेखों को उतरवाकर उन्हें प्रकाशित करने का भी विचार चल रहा है। किसी योग्य व्यक्ति के मिलते ही यह कार्य भी प्रारम्भ कर दिया जावेगा। इसी प्रकार प्राचीन साहित्य के प्रकाशन के साथ २ नवीन साहित्य के निर्माण का भी क्षेत्र के अनुसन्धान विभाग की ओर से बराबर कार्य चल रहा है। जैनदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन, समन्तभद्राचार्य कृत युक्त्यनुशासन एवं प्राप्तमीमांसा पर विस्तृत हिन्दी टीकार्य भी प्रायः तैयार है। क्षेत्र कमेटी के सामने साहित्य प्रकाशन का काफी बड़ा कार्य-क्रम है । राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में जो महत्त्वपूर्ण अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध हुआ है उसके मुख्य २ ग्रन्थों को प्रकाशित करने की हमारी इच्छा है । लेकिन क्षेत्र की आय पहिले से दिनोंदिन कमती होने के कारण इन योजनाओं के कार्यान्वित होने में काफी समय लग जावेगा। इसके अतिरिक्त दानी सज्जनों का भी कर्तव्य है कि वे अपने दान की दिशा बदलें । अगर हम मन्दिरों के द्रव्य का साहित्य प्रकाशन के पवित्र कार्य में सदुपयोग करें तो इस विषय में पैसे की समस्या हल हो सकती है । मन्दिरों के अधिकारियों से भी मैं यह निवेदन करना अपना कर्तव्य समझता हूं कि वे अपने २ मंदिरों के लिये क्षेत्र के प्रकाशन को खरीदकर हमें पैसे की समस्या को हल करने में मदद दें। जयपुर ता०४-१-५४ बधीचन्द गंगवाल आनरेरी मंत्री:-प्रबन्धकारिणी कमेटी श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी

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