Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 5
________________ - प्रकाशकीय राजस्थान जैनों का मुख्य केन्द्र रहा है और अब भी है । सबसे अधिक संख्या में यही जैन रहते हैं। यहां के मन्दिर एवं उनमें स्थित शास्त्र भण्डार भारत भर में प्रसिद्ध हैं। यहां के गांव २ और नगर २ में जैन साहित्य बिखरा पड़ा है जिसे एकत्रित करके प्रकाश में लाने की अत्यधिक आवश्यकता है । मेरा तो दृढ विश्वास है कि राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होने वाला साहित्य जैन इतिहास ही नहीं किन्तु भारतीय इतिहास तैयार करने के लिये भी अमूल्य निधि है जिसका विद्वानों को अवश्य उपयोग करना चाहिये . राजस्थान के इस विखरे हुये साहित्य की खोज एवं छानबीन के विषय में सर्व प्रथम हमें श्री | ६० चैनसुखदासजी साहब न्यायतीर्थ जयपुर से प्रेरणा मिली और उन्हीं की प्रेरणा से दि. जैन श्र० क्षेत्र श्री महावीरजी की प्रबन्ध कारिणी कमेटी ने साहित्य सेवा का यह पुनीत कार्य अपने हाथ में लिया । सबसे पहिले राजस्थान के शास्त्रभण्डारों में उपलब्ध प्रन्थों की एक सूची तैयार करवाने का निश्चय किया जिससे उन में उपलब्ध साहित्य के विषय में विद्वानों को जानकारी प्राप्त हो सके । इसी निश्चय के फल स्वरूप सबसे पहिले भामेर शास्त्र भण्डार व जयपुर शहर के मन्दिरों के भण्डारों की छानबीन एवं सूची तैयार करने का कार्य प्रारम्भ किया गया। क्योंकि अकेले जयपुर के शास्त्र भण्डारों में २०-२५ हजार तक ग्रन्थ मिलने का अनुमान किया जाता है । अब तक शहर के ६ भएडारों के दस हजार प्रन्थों की सूची तैयार हो चुकी है। जिनमें प्रथम और इस द्वितीय भाग में मिला कर ६ हजार से अधिक ग्रन्थों की सूची प्रकाशित हो चुकी है । ग्रन्थ सूची का तीसरा भाग भी प्रायः तैयार सा ही है और उसे भी प्रकाशन के लिए शीघ्र ही प्रेस में दे दिया जायेगा। प्रन्थ सूची तैयार करना बड़ा कठिन कार्य है। जैनों के शास्त्र भण्डारों की प्रायः अच्छी हालत नहीं है । ये शास्त्र भण्डार व्यवस्थित तो होते ही नहीं है किन्तु उनकी दशा भी शोचनीय रहती है। इसलिये जिस भएडार की सूची बनाने का कार्य प्रारम्भ किया जाता है तो वहां के भण्डार को भी पूर्ण व्यवस्थित बनाना पड़ता है। शास्त्रों को जो अब तक एक २ वेष्टन में कितनी ही संख्या में पाये जाते थे उन्हें पृथक् २ एक २ वेष्टन में लगाया जाता है तथा उन्हें फिर अकारादिक्रम से रखा जाता है । प्रत्येक शास्त्र के ऊपर एक कार्ड लगा दिया जाता है जिसमें शास्त्र का संक्षिप्त परिचय दे दिया जाता है । इस प्रकार पन्थ सूची बानाने के साथ २ शास्त्र भण्डार को भी पूर्ण रूप से व्यवस्थित बनाना पडता है । इस कार्य में पैसा तो अधिक खर्च होता ही है किन्तु समय भी काफी खर्च हो जाता है। फिर भी हमें तो अत्यधिक

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