Book Title: Raja aur Praja Author(s): Babuchand Ramchandra Varma Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 7
________________ निवेदन। इसके पहले हमारे पाठक जगत्प्रसिद्ध लेखक सर रवीन्द्रनाथ टागोरकी दो निबन्धावलियाँ (स्वदेश और शिक्षा ) पढ़ चुके हैं । आज यह तीसरी निबन्धावली उपस्थित की जाती है। हमारा विश्वास है कि हिन्दीके राजनीतिक साहित्यमें यह एक अपूर्व चीज होगी। इसमें पाठकोंको कवि-सम्राटकी सर्वतोमुखी प्रतिभाका दर्शन होगा। वे देखेंगे कि रवीन्द्र बाबूका राजनीतिक ज्ञान भी कितना गंभीर, कितना प्रौढ़ और कितना उन्नत है । हमारी समझमें राजनीतिके क्षेत्र में काम करनेवालोंको और अपने प्यारे देशको उन्नति चाहनेवालोंको ये निबन्ध पथ-प्रदर्शकका काम देंगे । राजा और प्रजाके पारस्परिक सम्बन्धको स्पष्टताके साथ समझनेके लिए ऐसे अच्छे विचार शायद ही कहीं मिलेंगे। निबन्ध पुराने हैं, कोई कोई तो २५-२६ वर्ष पहले के लिखे हुए हैं। फिर भी वे नये से मालूम होते हैं। उनमें जिन सत्यों पर विचार किया गया है, वे सार्व. कालिक और सार्वदेशीय हैं, और इस लिए वे कभी पुराने नहीं हो सकतेउनकी जीवनी शक्ति सदा स्थिर रहेगी। पाठकोंसे यह निवेदन कर देना आवश्यक है कि ये निबन्ध अध्ययन और मनन करने योग्य हैं-केवल पढ़ डालनेके नहीं । साधारण पुस्तकों के समान पढ़ जानेसे ये समझमें भी नहीं आ सकते । इन्हें बारम्बार पढ़ना चाहिए और हृदयंगम करना चाहिए। हिन्दी-संसारमें गंभीर और प्रौढ़ ग्रन्थोंके पढ़नेवालोंकी संख्या धीरे धीरे बढ़ रही है, यह जानकर ही हमने इस निबन्धावलीको प्रकाशित करनेका साहस किया है। आशा है कि इसके पढ़नेवाले हमें यथेष्ट संख्यामें मिल जावेंगे। -प्रकाशक।Page Navigation
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