Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 4
________________ दमं. विज्ञापन विज्ञापन । १॥ विदित हो कि खर्गवासी तत्त्वज्ञाता शतावधानी कविवर श्रीरायचन्द्रजीने तत्त्वज्ञानपरिपूर्ण अतिशय उपयोगी और अलभ्य IN ऐसे श्रीउमाखाति, श्रीकुन्दकुन्दाचार्य, श्रीहरिभद्रसूरी आदि आचार्योंके रचे हुए महान् शास्त्रोंका सर्वसाधारणमें प्रचार करनेके लिये श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडलकी स्थापना की थी. जिसके द्वारा आज पर्यंत रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला नामक छूटक अंक ओर 0 पुस्तक प्रकट होकर तत्त्वज्ञानाभिलाषी भव्यजीवोंको आनंदित कर रहा है। इस शास्त्रमाला द्वारा मूल और हिन्दी भाषानुवाद सहित २१०० पृष्ठ ग्राहकोंके पास भेजे गये है। जिनमें अनुमान १०५०४ पृष्ठ श्वेताम्बर सप्रदायके और १०५० पृष्ठ ही दिगम्बर संप्रदायके शास्त्ररत्नोंके है । यह योजना विज्ञ पाठकोंको दोनों सप्रदायोंके अभिप्राय विदित होनेके लिये ही की गई है । इस लिये आत्मकल्याणके इच्छक भव्यजीवोंसे प्रार्थना है कि इस पवित्र शास्त्रमालाके पुस्तकका ग्राहक बनकर अपनी चल लक्ष्मीको अचल करै और तत्त्वज्ञानपूर्ण जैनसिद्धान्तोंका पठनपाठनद्वारा प्रचारIN] कर हमारी इस परमार्थयोजनाके परिश्रमको सफल करै । प्रत्येक सरखतीभण्डार, सभा और पाठशालामें इसका संग्रह अवश्यमेव करना चाहिये। रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाद्वारा प्रकाशित पुस्तकें. १सप्तभंगितरंगिणी भा. टी. यह न्यायका अपूर्व ग्रंय है। इसमें ग्रन्थकर्ता श्रीविमलदासजीने स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, आदि भंगोका वर्णन बहुत ही अच्छा किया है। निछरावल रु.१) २ पुरुषार्थसिद्धयुपाय भा टी. यह श्रीअमृतचन्द्रखामी विरचित प्रसिद्ध शास्त्र है। इसमें आचार संवन्धी बडे २ गूढ रहस्य है। निछरावल रु० १) (हाल खलास है)। ३ पञ्चास्तिकाय भा. टी. यह श्रीकुंदकुंदखामी कृत मूल और श्रीअमृतचन्द्रसूरी कृत टीकासहित प्रसिद्ध शास्त्ररत्न है । इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, और आकाश इन पाच द्रव्योंका उत्तम रीतिसे वर्णन है। निछरावल रु. १०) ॥१ ॥Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 443