Book Title: Punya ka Fal
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 5
________________ पुण्यका फल एक दिन उसने वीरवती को देखा। वीरवती की सुन्दरता पर वह मुग्ध हो गया। KORE allpdTM 388386 वीरवती ने भी गारक को देखा। उसे भी गारक से प्रेम हो गया। गारक और वीरवती अक्सर मिलने लगे। कुछ समय बाद सेठ दत्त स्नद्वीप से धन कमाकर लौटा। वीरवती, मैं मेरी पत्नि चोर हूं। क्या तुम्हें यह वीरवती पतानहीं कैसी (जानकर भी मैं अच्छा है? क्योंन पहले ससुलगता है? राल चलकर उसका 65.0 हाल जानें। 000 G तुम क्या करते हो, इससे मुझे क्या लेनादेना। मैं तो तुमसे प्रेम करती हूँ। उसके पास बहुत धन था।

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