Book Title: Punya ka Fal
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 8
________________ जैन चित्रकथा सेठ दत्त से वीरवती भी बड़ी प्रसन्नता से मिली। बस कितने दिन धंधा चल रहा लगा दिएनाथ, था,सो रूकना परदेस में पड़ा। अचानक क्या बात है वीरवती का वीरवती? तुम उदास चेहरा उदास क्यों होगयीं? मेरे आने हो गया। से प्रसन्न नहीं हुई? नहीं P 000000 O OOG STO TODa देरवो! तुम्हारे लिए कितने बहुमूल्य रून लाया हूं। इन्हें पहनने से तुम और सुन्दर लगोगी। किन्तु वीरवती के मन में तो कोई और ही दुख था। अरे! इतने सुन्दरत्नपाकर भी तुम प्रसन्न नहीं हुई। पOOOOO

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