Book Title: Punya ka Fal
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ अभयदान की कथा किंतु जब धर्मिल ने वहां मुनिराज को देखा तो उसको बड़ा क्रोध आया। मुनीमजी! आपने मैनें नहीं। ये तो देवलि किसकी अनुमति से इस जीने मुनिराज को यहां ठहराया कमरे में मुनिको है। मेरे लिए तो आप दोनों ही ठहराया है? धर्मशाला के मालिक हैं।मैं उन्हें कैसे रोक सकता था? नहीं। धर्मशाला में, मेरी अनुमति के बिना कोई नहीं ठहर सकता। देवलि कौन होता है? Brain किंतु.. इसके बाद गुस्से से भरा हुआ धर्मिल मुनिराज के पास गया। मुनिराज! आपको यहां (ठहरने का कोई अधिकार नहीं है। आप कृपा कर यहां से इसी समय चले जाएं। देवलि! ALBULLETITLE OMDODE

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