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देवलि भाई! तुमने तो मेरे मन की बात जान ली। मैं भी यही सोच
रहा था कि क्या करूं?
अभयदानकीकथा
हम जो भी करें,उससे मानव कल्याण होना चाहिए।
हां मैं भी इसबात से सहमत हा
तो क्यों न हम दोनों मिलकर एक धर्मशाला बनवा दें, जहां मुनि-तपस्वी भी रह सके अपने यहां ऐसी कोई धर्मशाला
है भी नहीं।
अच्छा सुझाव है मित्रालो कलसेही काम शुरू करदो।
VODA