Book Title: Punya ka Fal
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 15
________________ पुण्य का फल एक पेड़ के पीछे छिपा सहस्रभट यह दृश्य देख रहा था। देर मत करो प्रिये! आओ, अपने मुख का पान मुझे दो और सुखी बनाओ। 2 किंतु गारक तो सूली पर आर था। वहां वीरवती कैसे पहुंचे ? तब दीखती ने वहीं पड़े मुर्दो को उठाकर एक के ऊपर एक रखा | अब वह मुर्दों पर बढ़कर कारक के मुख के पास पहुंच गयी मारक ने उसके होठों का चुम्बन किया 13

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