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पुण्य का फल
एक पेड़ के पीछे छिपा सहस्रभट यह दृश्य देख रहा था।
देर मत करो प्रिये! आओ, अपने मुख का पान मुझे दो और सुखी बनाओ।
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किंतु गारक तो सूली पर आर था। वहां वीरवती कैसे पहुंचे ? तब दीखती ने वहीं पड़े मुर्दो को उठाकर एक के ऊपर एक रखा
| अब वह मुर्दों पर बढ़कर कारक के मुख के पास पहुंच गयी मारक ने उसके होठों का चुम्बन किया
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