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जैन चित्रकथा वीरवती को फिर संदेह हआ कि कोई आ | वीरवती फिर अंधेरे में आगे बढ़ी तो सामने ही शमशान था रहा है, किन्तु अन्धेरे में कुछ भीन देख सकी। जहां गारक को सूली पर चढ़ाया गया था।
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MEEHAत्रीमती
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अभी जिन्दा है,कुछ सांसबाकी है।
वीरवती सूली परचढे गारक केपास पहुंची तो देखा कि वह अरे येतो
नहीं प्रिये पलक झपका रहा मुझे बचाने का प्रयत्न है। ये तो जिन्दा है। व्यर्थ जायेगा।समय नष्ट मुझे तुरन्त इसे न करो। मैं कुछ ही पल बचाने का प्रयत्न का मेहमान है। मेरीतुम्हाकरनाचाहिए।
री यह अंतिम भेट है
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