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माँ का दिल
७७ पति से, हो सके वहाँ तक कुछ भी माँगना मत | प्रसन्न हुए पति बिना माँगे , न चाहिए तो भी पत्नी को काफ़ी कुछ देते हैं। फिर भी कभी कुछ माँगना पड़े तो विनय से, नम्रता से माँगना। उनकी इच्छा का अनुसरण करने का प्रयत्न करना। ___ ज्यादा तो तुझे क्या बताऊँ? तू खुद समझदार है, धर्मप्रिय है और हमारे कुल के नाम को उज्ज्वल बनानेवाली है। तेरे पास सच्चा ज्ञान है, श्रद्धा है, और अनेक कलाएँ हैं, इन सबका सुयोग्य- समय एवं जगह पर उपयोग करने की बुद्धि भी तेरे पास है।
बेटी, पंचपरमेष्ठी भगवान सदा तेरी रक्षा करें... ऐसी शुभकामना करती रहँगी... मैं तेरी राह देखूगी... बेटी... तू भी कभी तेरी इस माँ को याद करना...!!
रतिसुंदरी की आँखो में आँसू की बाढ़ आ चुकी थी।
राजा एवं रानी दोनों रथ में बैठकर अमरकुमार से मिलने के लिए धनावह श्रेष्ठी की हवेली में आये। सेठ व सेठानी ने उन दोनों का यथोचित स्वागत किया। अमरकुमार ने भी आदर व्यक्त किया।
राजा ने कहा : 'कुमार... विदेश जाने का निर्णय तुमने कर ही लिया है, इसलिए 'तुम विदेश मत जाओ', ऐसा कहकर तुम्हारे उत्साह को तोडूंगा नहीं। तुम्हारे रास्ते में विघ्न नहीं करना है। परंतु, सुरसुंदरी भी तुम्हारे साथ जाने के लिए तैयार हो गयी... हमारी वह इकलौती बेटी है... यह तुम जानते ही हो उसपर हमारी अपार ममता है... यह भी तुमसे छिपा नहीं है।
'कुमार, तुम पर पूरी श्रद्धा एवं पूरा भरोसा रखकर हमने अपनी बेटी तुम्हें सोंपी है। हमारा तो वह जीवन है... उसके सुख में हम सुखी... उसके दुःख में हम दुःखी।
परदेश का सफ़र है... लंबा सफ़र है। कभी सुरसुंदरी कुछ गलती कर बैठे तो उसे माफ़ कर देना। कभी भी उसे अलग मत करना । देखना, कहीं उसे धोखा न हो जाये | राजा रो पड़े | रानी की भी सिसकियाँ सुनायी देने लगी।
अमरकुमार ने कहा : 'हे ताततुल्य! आप निश्चित रहें, आपकी शुभकामनाओं से हमारी विदेश- यात्रा निर्विघ्न होगी... हम दोनों का पारस्परिक प्रेम भी अखंड रहेगा।
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