Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 321
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किये करम ना छूटे ३०९ AvawanNAM. KLEARNIXE.. Statestxm. ४७. किये करम ना छूटे Sty भा 2FV E NTaarxxmarawe'rvaranMarapraNGINxameriorsSA: --- Vira "' - .' ..... महामुनि श्री ज्ञानधर ने आँखे बंद की। अवधिज्ञान के आलोक मे सुरसुंदरी के भूतकालीन पर्याय देखे। अमरकुमार को अतीत में देखा। दोनों का रिश्ता देखा... जाना... और आँखे खोलकर रहस्य पर से परदा उठाते हए वे बोले : __ 'राजन, संसार में परिभ्रमण करनेवाले जीव राग-द्वेष और मोह के अधीन बनकर पाप करते रहते हैं; पापकर्मों के पाशों में आवश हो जाते हैं। बाँधते वक्त खयाल रहता नहीं है कि वे पापकर्म जब उदित होते हैं, तब जीवात्मा दुःखी-दुःखी हो जाता है। सुरसुंदरी ने गत जन्म में ऐसे ही पापकर्म किए थे। जिसके फलस्वरूप उसे दुःखों के दावानल में सुलगना पड़ा। लंबी कहानी है, जन्म-जन्मांतर की यात्रा दीर्घ होती है। मैं तुम्हारे सवाल को लक्ष्य करके सुरसुंदरी के गत जन्म की बातें बता रहा हूँ। सूदर्शन नाम का एक सुहावना नगर था। वहाँ पर राजा सुरराज राज्य करता था। रेवती नामक उसकी रानी थी। राजा-रानी दोनों में परस्पर प्रगाढ़ प्यार था... प्रीति थी... एक-दूजे के प्रति दोनों पूर्ण वफादार एवं समर्पित थे। देवलोक के इंद्र-इंद्राणी से दिव्य सुख दोनों अनुभव कर रहे थे। एक दिन की बात है। राजा-रानी नौकर-चाकर और कुछ सैनिकों को साथ लेकर एक सुंदर वनखंड में क्रीड़ा करने गये। एक रमणीय उपवन के निकट पड़ाव डाल दिया । सैनिक सुरक्षा के इरादे से आसपास तैनात हो गए। राजा-रानी घूमते हुए वन में कुछ दूर निकल गये। ___ एक घटादार पेड़ के नीचे एक महामुनि को उन्होंने ध्यानस्थ दशा में देखा। मुनि युवावस्था वाले थे। उनके चेहरे पर तपश्चर्या का तेज झिलमिला रहा था। उनके शरीर पर के वस्त्र मलिन से थे। राजा सुरराज ने मुनि के चरणों में मस्तक झुकाया। अंजलि जोड़कर वंदना की और रानी रेवती से कहा : 'प्रिये, धन्य हैं ये महामुनि! भरी जवानी में महाव्रतों को पालन करनेवाले महामुनि की भावपूर्ण वंदना करो... | कितनी शांत-प्रशांत मुखमुद्रा है इनकी... For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347