Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 344
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सभी का मिलन शाश्वत में ३३२ __ जीवन और मृत्यु में संसार और मोक्ष में उन्हें कोई भेद नहीं लगता है...। वे क्रोधविजेता बन गये थे, मानविजेता बन गये थे, मायाविजेता बन गये थे और लोभविजेता बन गये थे। ___ एक धन्य दिन रागद्वेष के बंधन तोड़ डाले...क्षपकश्रेणी लगायी... आत्मभाव की सघनता बढ़ी... विशुद्धि बढ़ती ही चली... घातीकर्मों का नाश हुआ। दोनों को केवलज्ञान प्रगट हो गया। अनंतज्ञान, अनंतदर्शन... वीतरागता और अनंतवीर्य प्रगट हो गया...!! + + + महाराजा रिपुमर्दन और रानी रतिसुंदरी को समाचार मिले : 'अमरमुनि को एवं साध्वी सुरसुंदरी को केवल ज्ञान प्रगट हुआ है।' रिपुमर्दन ने तुरंत ही धनावह श्रेष्ठी को समाचार भिजवाये। रथ जोड़े गये। राजा-रानी, सेठ-सेठानी, गुणमंजरी एवं अक्षयकुमार केवलज्ञानी के दर्शन करने के लिए और केवलज्ञान का उत्सव करने के लिए काकंदी नगरी की ओर रवाना हुए। काकंदी नगरी के उद्यान में देवों ने केवलज्ञान का महोत्सव किया था। हज़ारों देव-देवियाँ और हज़ारों स्त्री-पुरूष केवलज्ञानी अमर मुनिराज की वाणी का अमृतपान कर रहे थे। राजा रिपुमर्दन वगैरह ने भी महामुनी की वंदना की और वे उपदेश सुनने के लिए बैठ गये। केवलज्ञानी मुनिराज ने संसार की यथार्थता का स्वरूप दर्शन करवाया। आत्मा की स्वभावदशा का वर्णन किया, मोक्षमार्ग का ज्ञान दिया। ___ अक्षयकुमार ने अपने पिता मुनिराज को स्वर्ण-कमल पर आरूढ़ हुए देखे... उनकी अमृतवाणी सुनी। उसे परम आह्लाद प्राप्त हुआ। उसका मन तृप्त बन गया। गुणमंजरी ने देशना पूर्ण होने के पश्चात् खड़े होकर विनती की : गुरूदेव, चंपानगरी को पावन कीजिए, मेरा भवसागर से उद्धार करो गुरूदेव! कृपालु, इस संसार का बाकी रहा हुआ एक कर्तव्य अब पूरा हो चुका है... आप अब मेरे पर कृपा करें।' 'अब तेरा समय परिपक्व हो चुका है, तेरे अधिकांश कर्म नष्ट हो गये हैं, तुझे अति शीघ्र चारित्रधर्म की प्राप्ति होगी।' For Private And Personal Use Only

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