Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 345
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सभी का मिलन शाश्वत में ३३३ सभी के मन प्रफुल्लित हुए। सभी चंपानगरी में आये। महाराजा रिपुमर्दन ने काकंदी-नरेश की राजकुमारी के साथ युवराज अक्षयकुमार की शादी करके शुभ मुहूर्त में राजसिंहासन पर उसका राज्याभिषेक कर दिया। ___ केवलज्ञानी अमर मुनिराज और केवलज्ञानी साध्वीजी सुरसुंदरी चंपानगरी के बाह्य उपवन में पधारे। हज़ारों श्रमण-श्रमणियों से उपवन भर गया। + + + चंपानगरी में आनंद का सागर उछलने लगा। हज़ारों प्रजाजन केवलज्ञानी भगवान के दर्शन-वंदन करने के लिए और उपदेश सुनने के लिए दौड़े। चंपानगरी में ढिंढोरा पीटने लगा : 'महाराजा और महारानी चारित्र ग्रहण करेंगे।' 'धनावह श्रेष्ठी और धनवती सेठानी भी चारित्र ग्रहण करेंगे।' 'गुणमंजरी भी चारित्र अंगीकार करेगी।' नगर में महोत्सव मनाये गये। गरीबों को दान दिये गये। राजा अक्षयकुमार माता गुणमंजरी की गोद में सर रखकर फफक पड़ा.. रो-रोकर उसकी आँखें सूज गयीं। गुणमंजरी ने बड़े वात्सल्य से उसे आश्वासन दिया और कहा : 'वत्स... एक दिन तुझे भी इसी त्याग के मार्ग पर चलना है। प्रजा का पालन नीतिपूर्वक करना... परमात्मा की शरण में रहना।' दीक्षा का दिन आ गया था। भव्यातिभव्य... शानदार शोभायात्रा निकली... केवलज्ञानी महामुनि के हाथों राजा-रानी, सेठ-सेठानी और गुणमंजरी की दीक्षा हुई। रतिसुंदरी, धनवती, गुणमंजरी ने केवलज्ञानी सुरसुंदरी साध्वी की शरण अंगीकार की। राजा रिपुमर्दन और सेठ धनावह ने अमरमुनि के चरणों में जीवन समर्पित किया। राजा अक्षयकुमार ने राजपरिवार के साथ सभी की वंदना की और म्लानवदन... आँसूभरी आँखों से नगर में लौटा। For Private And Personal Use Only

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