Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 335
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयम राह चले सो शूर ३२३ AAAABETA. r uitm.seastsettes HAP[ ४७. संयम राह चले सो शूर Maniy 'महाराजा, हम अवधिज्ञानी महामुनि श्री ज्ञानधर के दर्शन-वंदन करने के लिए दक्षिणार्ध भरत में चंपानगरी में गये थे। वहाँ से आप के लिए एक संदेश लेकर के आये हैं।' सुरसंगीत नगर की राजसभा में उपस्थित होकर दो विद्याधरों ने विद्याधर राजा रत्नजटी के समक्ष निवेदन किया । चंपानगरी का नाम सुनते ही रत्नजटी सहसा सिंहासन पर से खड़ा हो गया... और बोला : 'महानुभाव, जल्दी-जल्दी वह संदेश मुझे कह सुनाओ... मैं बड़ा उत्सुक 'राजेश्वर, आपकी धर्मभगिनी सुरसुंदरी और उनके पति अमरकुमार दोनों चारित्रधर्म अंगीकार करने के लिए तत्पर बने हैं। उन्होंने आपको याद किया है। आपकी धर्मभगिनी ने कहलाया है कि मेरे भाई को कहना कि चारों भाभियों को लेकर दीक्षामहोत्सव में अवश्य चंपानगरी पधारें।' रत्नजटी का रोएँ पुलक उठे। उसकी आँखें सजल बन गयीं। उसका गला रूंध गया... उसने सिवा अपने मुकुट के तमाम आभूषण उतारकर उन दो विद्याधरों को दान में दे दिये। राजसभा में से निकलकर सीधा वह पहुँचा अपने महल में और चारों रानियों को बुलाकर समाचार दिये | रानियाँ तो हर्ष से नाच उठीं। रत्नजटी बोला : ____ धन्य है बहन! संसार के विपुल सुख-भोग मिलने पर भी, उन सुखों का त्याग करके तू परमात्मा वीतराग के बतलाए हुए चारित्रमार्ग पर चलने को तत्पर हुई है! तेरे गुणों का पार नहीं है! तू सचमुच उत्तम आत्मा है! आ रहा हूँ बहन... अभी आ पहुँचता हूँ... तेरे पास... तेरा दीक्षा महोत्सव मैं मनाऊँगा!' रानियों को तैयार होने की सूचना दे दी। रत्नजटी ने अपना विमान सजाया। साथ में अन्य एक हज़ार विद्याधरों को आने के लिए सूचना दे दी। चारों रानियों के साथ विमान में बैठकर रत्नजटी ने चंपानगरी की ओर प्रयाण किया । पीछे-पीछे एक हज़ार विमान गतिशील बने । पूरा काफीला चला चंपानगरी की ओर! + + + For Private And Personal Use Only

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