Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 320
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किये करम ना छूटे ३०८ करता है। अनंत-अनंत पापकर्मों को उपार्जित करके नरक इत्यादि दुर्गतियों में भटक जाता है।' ___महामुनि की धर्मदेशना पुष्करावर्त्त मेघ की भाँति बरस रही है। श्रोतागण रसनिमग्न बनकर श्रवण कर रहे हैं। अमरकुमार और सुरसुंदरी तो आत्मविभोर हो उठे हैं। उनके दिल में दबी-दबी वैराग्यभावना बहार में आकर खिलने लगी है। धर्मदेशना पूर्ण होती है। महाराजा रिपुमर्दन खड़े हुए। विनयपूर्वक हाथ जोड़कर सवाल करते हैं : 'गुरूदेव, मेरी लाड़ली बेटी सुरसुंदरी ने पूर्वजन्म में एसे कौन से कर्म किये थे कि जिससे उसे इस जनम में बारह बारह-बरस तक का पति विरह भोगना पड़ा? भयानक कष्टों और संकटों का सामना करना पड़ा? 'गुणनिधि गुरूदेव! आप तो ज्ञानी हैं, हमा पर बड़ी कृपा होगी, यदि आप अपने श्रीमुख से इन बातों को स्पष्ट करने की कृपा करेंगे।' ___ महाराजा रिपुमर्दन विनयपूर्वक निवेदन करके अपने आसन पर बैठे । सभी के दिल-दिमाग उत्सुकता से एकाग्र बन गये महामुनि के प्रति । गुरूदेव क्या जवाब देते हैं राजा के सवाल का? कईयों को तो राजा के सवाल से ताज्जुब भी हुआ। सभी परिचित नहीं थे सुरसुंदरी के जीवन के उस आँसू-उदासी भरे हिस्से से! __ 'सुरसुंदरी-अमरकुमार के जीवन में दुःख? वह भी बारह-बारह बरस की जुदाई... सुरसुंदरी का जीवन संकट की खाई में?' कईयों को ऐसी कल्पना से ही कँपकँपी-सा अनुभव हुआ। इधर सुरसुंदरी स्वयं ही उत्सुक थी अपने पूर्वजन्म के बारे में जानने के लिए | वह यह भी जानना चाहती थी कि इतना कुछ बीतने पर भी अमरकुमार के प्रति उसका दिल जुड़ा हुआ ही क्यों रहा? ___ अमरकुमार के दिल में पल भर के लिए अपराध भाव की ग्रंथि कौंध उठी... पर उसने अपने मन को सम्हाल लिया। सभी उत्कंठित थे गुरूदेव की बातों को सुनने के लिए! For Private And Personal Use Only

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