Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आंसुओं में डूबा हुआ परिवार ३१८ __'यदि इस पुत्र की जिम्मेदारी नहीं होती तो हम तीनों साथ-साथ ही चारित्रधर्म अंगीकार करते! पर इस पुत्र के लालन-पालन की जिम्मेदारी तुझे उठानी है।' 'नहीं... यह नहीं होगा... मैं पुत्र के बिना जी लूँगी... पर तुम दोनों के बिना मेरा जीना संभव नहीं है...।' ___ 'मैं क्या नहीं जानती हूँ तेरे दिल को? परंतु उस राग के बंधन को काटना होगा... मंजरी, इस प्रेम को तोड़ना होगा।' 'नहीं टूट सकता!' गुणमंजरी फफक-फफककर रो पड़ी। सुरसुंदरी ने उसको अपने उत्संग में खींच लिया। उसके सिर पर अपनी कोमल अंगुलियों से सहलाने लगी। 'तुम दोनों मेरा, पुत्र का, सब का त्याग करके चले जाओगे?' गुणमंजरी ने सुरसुंदरी की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा : 'मंजरी?' 'क्या तुम इतने पत्थर दिल हो जाओगे?' 'मंजरी, क्या एक न एक दिन स्नेही-स्वजनों के संयोग का वियोग नहीं होगा? मंजरी, संयोगों में से जनमता सुख शाश्वत नहीं है। वह सुख स्वयं दुःख का कारण है। संयोगजन्य सुख में डूबनेवाला जीव, मौज मनानेवाला जीव दुःख का शिकार होता है। अतः हम को ज्ञानदृष्टि से उन संयोगों के सुख से मुक्त हो जाना चाहिए।' 'तो मैं भी मुक्त हो जाऊँगी।' ___ 'पुत्र की जिम्मेदारी है, मंजरी तुझपर! तू पुत्र का लालन-पालन कर, वह बड़ा बने... तुझसे उत्तम संस्कार उसे मिले... वह सुयोग्य राजा बने, फिर तू भी चारित्रधर्म की आराधना करना। प्रजा को स्वस्थ, संस्कारी राजा देना भी एक विशेष कर्तव्य है न?' ___ 'तो तब तक तुम भी रूक जाओ... घर-गृहस्थी में रहकर तुम्हें जितनी धर्म आराधना करनी हो, उतनी करना... मैं तुम्हें बिलकुल नहीं रोकूँगी।' ___'मंजरी... मेरी बहन! गुरूदेव ने हमारा पूर्वभव कहा। हमें भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ। हमने भी खुद हमारा पूर्वजन्म देखा... जाना... और हमारे दिल काँप उठे हैं! गृहस्थी में रहना... कुछ दिन भी गुज़ारना... अब हमारे लिए For Private And Personal Use Only

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