Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० आंसुओं में डूबा हुआ परिवार तू ऐसा मत मानना कि तेरे प्रति हमें अरूचि या अभाव हो गया है! तेरे प्रति जो प्रेम था... वह विशुद्ध बन गया है। प्रेम का विषय अब तेरी देह नहीं, पर तेरी आत्मा बन गयी है। आत्मा का आत्मा से प्रेम! अद्भुत होता है, वह प्रेम! देह के अलग रहने पर भी वह प्रेम अखंड रहता है! एक दिन ऐसा आएगा कि हम तीनों की आत्माएँ अभेद भाव से मिल जाएँगी! तीनों आत्मज्योति मुक्ति में समा जाएगी...! फिर कभी भी वियोग या विरह नहीं होगा... अनंत काल तक संयोग ही संयोग! 'पुत्र की जिम्मेदारी तुझ पर ओढ़ाकर मैं अपना स्वार्थ तो सिद्ध नहीं कर रहा हूँ न?' मुझे यह विचार आ गया... अभी मैंने मौन रूप में इसी के बारे में सोचा...| तुझे अकेली छोड़कर... जिम्मेदारी तुझपर रखकर तभी हम जा सकते हैं... जब तू प्रसन्न मन से हमें बिदा दे!' तू अपनी मानसिक और आत्मिक स्थिति का विचार करके संसार त्याग की हमारी भावना का समर्थन करे। तु खूद भी संयमधर्म स्वीकार करने के लिए तत्पर हुई है - यह जानकर मेरा आनंद द्विगुणित हुआ है। हमारे पीछे तू भी ज़रूर आएगी ही संयम की राह पर! पुत्र को भी दूध के साथ आत्मज्ञान के अमृत का पान करवाना। त्याग-वैराग्य के आदर्शों का पान करवाना।' __ अमरकुमार नहीं बोल रहा था... उसका हृदय बोल रहा था । गुणमंजरी मुग्ध होकर सुनती जा रही थी। एक-एक शब्द उसके दिल को स्पर्श कर रहा था। उसके चेहरे पर स्वस्थता उभरने लगी। उसकी आँखों में समता तैरने लगी। वह गहरे सोच में खो गयी। खंड में मौन छा गया था। 'क्या पुत्र की जिम्मेदारी माताजी नहीं ले सकती?' 'अभी तक मैंने माँ से बात की नहीं है... उनकी अनुमति भी नहीं ली है... फिर भी यदि माताजी जिम्मेदारी ले-लें तो तू हमारे साथ संयम स्वीकार सकती है...!' इतने में धनवती ने खंड में प्रवेश किया। तीनों जन सकपकाकर खड़े हो गये। धनवती दोनों पुत्रवधुओं के हाथ थामे बैठ गयी। । ___ क्षमा करना तुम, मैंने तुम्हारा वार्तालाप दरवाज़े की ओट में खड़े-खड़े सुना है। पौत्र को पालने में सुलाकर मैं तुम्हारे पास ही आ रही थी, परंतु तुम्हारा वार्तालाप मुक्त मन से हो सके, इसलिए भीतर नहीं आयी।' For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347