Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 326
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ किये करम ना छूटे 'पर, मान लो कि वे इजाज़त न दें, तो क्या?' 'देंगे, जरूर देंगे इजाज़त! अपने दिल को क्या कभी भी उन्होंने दुखाया है? स्वयं दुःख सहन करके भी हम को विदेशयात्रा पर जाने की इजाज़त नहीं दी थी क्या? वैसे ही, वह अपनी तीव्र इच्छा देखकर, अपने सुख के लिए अवश्यमेव अनुमति देंगे।' 'गुणमंजरी यदि सहमत नहीं हुई तो?' 'मैं उसे सहमत कर लूँगी...| हाँ, अपनी संसारत्याग की बात सुनते ही पहले तो वह बेहोश ही हो जाएगी...| करुण रूदन, क्रंदन करेगी, पर आखिर वह भी सहमत हो जाएगी। उसे इस बात का बड़ा गहरा दुःख रहेगा कि वह खुद अपने साथ चारित्र नहीं ले सकेगी! पुत्रपालन की बड़ी जिम्मेदारी उसके सिर पर आयी है... और फिर वह पुत्र तो चंपानगरी का भावी राजा भी है!' 'वह जल्दी लौट आए तो अच्छा!' "वह न आए तब तक हम माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर लें...। आप अपने माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर लें... मैं भी अपने माता-पिता को समझाने की कोशिश करूँगी! हालाँकि मुझे तो आपकी इजाज़त मिल गयी है, फिर और किसी भी इजाज़त की ज़रूरत ही नहीं है, पर फिर भी माता-पिता का स्नेह असीम है... इसलिए उनके मन को समझाना-सहलाना भी ज़रूरी है।' दूसरे दिन सबेरे अमरकुमार और सुरसुंदरी गुरूदेव के दर्शन-वंदन करने गये, तब वहाँ पर उन्होंने गुरूदेव के समक्ष कुछ तेजस्वी स्त्री-पुरूषों को धर्मोपदेश श्रवण करते हुए देखे । वे दोनों भी वहाँ बैठ गये। उपदेश पूर्ण होने के पश्चात् मुनिराज ने कहा : । 'सुरसुंदरी, ये विद्याधर स्त्री-पुरूष हैं। वैताढ्य पर्वत पर से यहाँ दर्शन करने के लिए आये हैं।' सुरसुंदरी ने तुरंत ही गुरूदेव से बड़े अनुनय भरे स्वर में कहा : 'हे पूज्यपाद, क्या ये विद्याधर पुरूष मुझ पर एक कृपा करेंगे! सुरसंगीत नगर के राजा रत्नजटी मेरे धर्मबंधु हैं... उन्हें मेरा एक संदेश देंगे क्या?' 'ज़रूर... महासती! राजा रत्नजटी तो हमारे मित्र राजा हैं।' 'तो उन्हें कहना कि तुम्हारी धर्मभगिनी सुरसुंदरी अपने पति अमरकुमार के For Private And Personal Use Only

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