Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 291
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक अस्तित्व की अनुभूति २७९ 'नाथ... आपका वचन मैंने पूरा कर दिया है। सात कौड़ियों से राज्य ले लिया है... अब फिर याद मत कराना...!' 'सचमुच... श्री नवकार मंत्र का प्रभाव अचिंत्य है।' 'हाँ... उसी महामंत्र के प्रभाव से ही सारे दुःख टल गये... सुख मिले... यश फैला और तुम्हारा मिलना हुआ।' "ये सारी तेरी अपूर्व श्रद्धा एवं सतीत्व के अद्भुत चमत्कार हैं।' अरिहंत परमात्मा की कृपा है... भगवान पंचपरमेष्ठी का अनुग्रह है... नाथ! पर... अब आपको मेरी एक प्रार्थना स्वीकार करनी होगी।' 'माननी ही पड़ेगी न हर बात भाई... महाराज की बात न मानें तो अपनी तो खैर नहीं रहेगी!' 'नाथ... मैं अपने गुनाहों की माफी चाहती हूँ। मैंने आप पर चोरी का आरोप रखा... आपको सताया... मेरे पैरों में आप से घी मलवाया... आप मेरे इन अपराधों को भुला देंगे ना?' 'नहीं रे... बचपन का तेरा छोटा-सा भी अपराध बरसों तक नहीं भूल सका, तब फिर ये सारे अपराध कैसे भुला दूंगा? वापस तेरा त्याग करके चला जाऊँगा।' 'अब तो जाने ही नहीं दूंगी ना...? अदृश्य होकर पीछा करूँगी।' 'ओह, बाप रे... अब तो तुझे जरा भी सताया नहीं जा सकेगा... चार-चार विद्याएँ तेरे पास हैं... और सौ हाथीयों की ताक़त!' 'घबराना मत... उस चोर पर जैसा मुष्टिप्रहार किया... वैसा नहीं करूँगी...! पर अब यदि मुझे परेशान करोगे तो मैं अपने भाई को बुला लूँगी...!' 'अरे... मैं तो भुल ही गया यह बात! हम चंपानगरी पहुँचे, तब तू अवश्य अपने उन उपकारी भाई-भाभियों को अपने यहाँ आने का निमंत्रण भेजना | मैं भी उनके दर्शन करके कृतार्थ बनूँगा... 'बहुरत्ना वसुंधरा...' अभी तो मैंने सुरसंगीत नगर की सारी बातें कहाँ है की जब वे बातें आप सुनेंगे तो आप भावविभोर हो उठेंगे! पर सब बातें मैं आपसे तब कहँगी जब कि आप मेरे अपराधों को क्षमा कर देंगे!!! 'मिच्छामि दुक्कडं' 'मिच्छामि दुक्कडं' For Private And Personal Use Only

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