Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 305
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिदाई की घड़ी आई २९३ नहीं। घर के सभी बड़ों का आदर करना। छोटों के प्रति प्रेम रखना। और सभी को भोजन करवाकर, बाद में भोजन करना। ___ कभी भी असत्य मत बोलना । कटु वचन किसी से कहना मत | कभी किसी पर गलत इल्ज़ाम मत मढ़ना। सच बोलना... मीठा-मधुर बोलना... कम बोलना, हमेशा सोच-विचारकर बोलना। ____ 'बेटी... कभी दुर्जनों का संग मत करना। मिथ्यादृष्टि लोगों की बातें मत सुनना । घर में सभी को निर्मल दृष्टि से देखना | ज्यादा क्या कहूँ? मेरी प्यारी बेटी, इस ढंग से जीना कि दोनों पक्ष की-ससुराल-पीहर की शोभा बढ़े... और बेटी... जल्दी ही अपना मुखड़ा वापस दिखाना... मेरी लाड़ली-गुणवती बेटी' ....रानी गुणमाला गुणमंजरी को अपने सीने से लगाते हुए रो पड़ी! ___ अमरकुमार महाराजा के पास आकर गमगीन चेहरे से बैठ गया था। महाराजा ने अमरकुमार की ओर देखा । अमर का हाथ अपने हाथ में लेकर बड़े प्यार से कहा : 'कुमार, मेरी बातों का ज़रा भी बुरा मत मानना, मन में और कुछ मत सोचना । गुणमंजरी मुझे जान से भी ज्यादा प्यारी है। दूर देश में उसे बिदा कर रहा हूँ। तुम पर पूरा विश्वास है। फिर भी कुमार, तुमसे कहता हूँ, कभी उसका त्याग मत करना । उसका दिल मत दुःखाना ।' बोलते-बोलते महाराजा गद्गद् हो उठे। 'पिताजी, आप निश्चित रहना, 'प्राण जाएँगे पर वचन नहीं जाएगा।' अमरकुमार ने महाराजा को वचन दिया। 'बेटी सुरसुंदरी, सुरसुंदरी को अपने निकट बुलाकर राजा ने कहा : 'गुणमंजरी तेरे भरोसे पर है।' बोलते-बोलते राजा ज़ोरों से रो पड़े। अमरकुमार महाराजा के हाथ पकड़कर अपने कक्ष में ले गया। काफी आश्वासन देकर शांत किया। भोजन का समय हो चुका था। आज सभी को महाराजा के साथ राजमहल में भोजन करना था। इसलिए सभी राजमहल में पहुँचे। भोजन से निवृत्त होकर सभी बैठे थे, इतने में मृत्युंजय ने आकर समाचार दिये : 'महाराजा, सभी जहाज़ों को सजाने का काम शुरु है।' सारा माल-सामान आज शाम तक जहाज़ों में भर जाएगा।' 'तुम्हारी खुद की तैयारियाँ हो गयीं, मृत्युंजय?' सुरसुंदरी ने मृत्युंजय की ओर देखते हुए पूछा। For Private And Personal Use Only

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