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प्रवचन - सारोद्धार
१४४ से लेकर १४७ तक चार द्वारों में क्रमशः तीन, चार, दस और पन्द्रह प्रकार की संज्ञाओं का विवेचन किया गया है।
१४८वें द्वार में सम्यक्त्व के सड़सठ भेदों का विवेचन है, जबकि १४९ वें द्वार में सम्यक्त्व के एक-दो आदि विभिन्न भेदों की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।
१५०वें द्वार में पृथ्वीकाय आदि षट् जीवनिकाय के कुलों की संख्या का विवेचन है। प्राणियों की प्रजाति को योनि और उनकी उप-प्रजातियों को कुल कहते हैं । इन कुलों की संख्या एक करोड़ सत्तानवें लाख पचास हजार मानी गई है।
१५१ वें द्वार में चौरासी लाख जीव योनियों का विवेचन किया गया है। इस द्वार में पृथ्वीकाय की सात लाख, अप्काय की सात लाख, अग्नि काय की सात लाख, वायुकाय की सात लाख, प्रत्येक वनस्पतिकाय की दस लाख, साधारण वनस्पतिकाय की चौदह लाख, द्वीन्द्रिय की दो लाख, त्रीन्द्रिय की दो लाख, चउरिन्द्रीय की दो लाख, नारक चार लाख, देवता चार लाख तिर्यंच चार लाख, मनुष्यों की चौदह लाख प्रजाति (योनि) मानी गयी है ।
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१५२वें द्वार में गृहस्थ उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का विवेचन है । ये ग्यारह प्रतिमायें निम्न हैं— (१) दर्शनप्रतिमा, (२) व्रतप्रतिमा, (३) सामायिकप्रतिमा, (४) पौषधोपवासप्रतिमा, (५) नियमप्रतिमा, (६) सचित्तत्यागप्रतिमा, (७) ब्रह्मचर्यप्रतिमा, (८) आरम्भत्यागप्रतिमा, (९) प्रेष्यत्यागप्रतिमा, (१०) औद्देशिकआहारत्यागप्रतिमा, (११) श्रमणभूतप्रतिमा ।
१५४वें द्वार में विभिन्न प्रकार के धायों के बीज कितने काल तक सचित्त रहते हैं और कब निर्जीव हो जाते हैं, इसका विवेचन किया गया है।
१५५वें द्वार में कौनसी वस्तुयें क्षेत्रातीत होने पर अचित्त हो जाती हैं इसका विवेचन किया गया है । इसी क्रम में १५६वें द्वार में गेहूं, चावल, मूंग-तिल आदि चौबीस प्रकार के धान्यों का विवेचन किया गया है ।
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१५७वें द्वार में समवायांगसूत्र के समान सतरह प्रकार के मरण (मृत्यु) का विवेचन है। १५८वें और १५९ वें द्वारों में क्रमशः पल्योपम और सागरोपम के स्वरूप का विवेचन उपलब्ध होता है । इसी क्रम में १६० वें और १६१ वें द्वारों में क्रमशः अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणीकाल के स्वरूप का विवेचन किया गया है। उसके पश्चात् १६२वें द्वार में पुद्गलपरावर्तकाल के स्वरूप का विवेचन हुआ है 1
१६३वें और १६४वें द्वारों में क्रमश: पन्द्रह कर्मभूमियों और तीस अकर्मभूमियों का विवेचन किया
गया है ।
१६५वें द्वार में जातिमद, कुलमद आदि आठ प्रकार के मदों (अहंकारों) का विवेचन है । १६६ वें द्वार में हिंसा के दो और तियालीस भेदों का विवेचन उपलब्ध होता है । इसी प्रकार १६७ वें द्वार में परिणामों के एक सौ आठ भेदों की चर्चा की गई है।
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